मोकामा(MOKAMA):मोकामा में मंगलवार को आयोजित एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन ने भीतरखाने की राजनीति को उजागर कर दिया.कार्यक्रम में जहां पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह एनडीए के पोस्टर-बैनर और मंच के मुख्य आकर्षण बने, वहीं जदयू के मुख्य प्रवक्ता और मोकामा के पुराने नेता नीरज कुमार की अनुपस्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए.
मंच से गायब नीरज कुमार
नीरज कुमार न तो कार्यक्रम के मंच पर नजर आए और न ही उनकी तस्वीर एनडीए के पोस्टर-बैनर में दिखी.यह स्थिति खास इसलिए रही क्योंकि नीरज कुमार नीतीश कुमार के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं और लंबे समय से मोकामा में एनडीए की राजनीति को मजबूती देने का दावा करते रहे है.
अनंत सिंह की मौजूदगी पर सवाल
अनंत सिंह की अभी तक जदयू में आधिकारिक एंट्री नहीं हुई है, फिर भी वे सम्मेलन में एनडीए का चेहरा बने रहे.उनकी मौजूदगी और प्रमुखता ने यह संदेश दिया कि एनडीए चुनावी रणनीति में उन्हें अहम मान रहा है.गौरतलब है कि नीरज कुमार कई बार सार्वजनिक मंच से अनंत सिंह की आपराधिक छवि और दल बदलने की प्रवृत्ति पर सवाल उठा चुके है.इसके बावजूद केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, मंत्री अशोक चौधरी, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन और हम प्रवक्ता श्याम सुंदर शरण जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी में अनंत सिंह की भूमिका को मजबूती मिली.
पुराने नेताओं की उपेक्षा
सिर्फ नीरज कुमार ही नहीं, बल्कि वर्ष 2022 के मोकामा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रही सोनम देवी को भी सम्मेलन से दूर रखा गया.उस उपचुनाव में सोनम देवी ने अनंत सिंह की पत्नी और राजद प्रत्याशी नीलम देवी को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन जीत नीलम देवी के हिस्से आई थी.पिछले ढाई वर्षों से मोकामा में भाजपा की राजनीतिक गतिविधियां ललन सिंह और सोनम देवी के नेतृत्व में चल रही थीं, पर अब स्थिति बदलती दिख रही है और भाजपा भी अनंत सिंह के प्रति झुकाव बनाए हुए है.
राजनीतिक समीकरणों का बदलना
अनंत सिंह का राजनीतिक सफर हमेशा से दलों के बीच आवाजाही से जुड़ा रहा है वे 2020 में राजद के टिकट पर विधायक बने थे और उनकी पत्नी नीलम देवी ने 2022 के उपचुनाव में राजद प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी. ऐसे में एनडीए के मंच पर उनकी प्रमुखता से साफ संकेत मिलते हैं कि गठबंधन चुनाव से पहले मोकामा में नए समीकरण बनाने की कोशिश कर रहा है.
मोकामा में अंदरखाने सबकुछ ठीक नहीं है
एनडीए सम्मेलन से यह साफ हो गया है कि मोकामा में अंदरखाने सबकुछ ठीक नहीं है. एक ओर जहां पुराने और स्थापित नेताओं की उपेक्षा हो रही है, वहीं दूसरी ओर आपराधिक छवि वाले नेताओं को प्रमुखता दी जा रही है। इससे यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या एनडीए चुनाव से पहले रणनीतिक मजबूरी में ऐसे चेहरे आगे कर रहा है, या फिर यह भीतरघात का संकेत है.
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