टीएनपी डेस्क (TNP DESK) :  झारखंड कैबिनेट की बैठक में ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए सरकार ने मांगुर मछली (कैटफ़िश) को राज्य मछली को दर्जा दिया है. यह फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य के मत्स्यपालन उद्योग को भी नई पहचान देने वाला साबित होगा. राज्य सरकार के फैसले के बाद से अब मांगुर मछली को ‘मछलियों का राजा’ कहा जा रहा है, क्योंकि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका दोनों में अहम भूमिका निभाती है.

जानिए मांगुर मछली क्यों है खास?

मांगुर मछली एक मजबूत और टिकाऊ प्रजाति है, जो कम ऑक्सीजन और गंदे पानी में भी जीवित रह सकती है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यह बहुत तेजी से बढ़ती है और पूरे साल पालन की जा सकती है. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में देशी मांगुर (Clarias batrachus) का पालन लंबे समय से किया जा रहा है. यह मछली न केवल पौष्टिक होती है बल्कि प्रोटीन से भरपूर होती है. राज्य के मत्स्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी बाजार में बड़ी मांग है और इसकी कीमत सामान्य मछलियों की तुलना में अधिक होती है. हालांकि झारखंड सरकार ने देशी मांगुर को ही प्रोत्साहित करने का फैसला किया है, क्योंकि थाई मांगुर (विदेशी प्रजाति) पर्यावरण के लिए हानिकारक मानी जाती है.

मत्स्यपालन क्षेत्र में मिलेगी नई पहचान

राज्य सरकार का यह निर्णय झारखंड के हजारों मछुआरों और युवाओं के लिए रोजगार का नया अवसर लेकर आएगा. मत्स्य विभाग ने राज्य के कई जिलों में मांगुर पालन को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं. अब मांगुर मछली के पालन के लिए सब्सिडी, बीज उपलब्धता और तकनीकी सहयोग देने की योजना भी बनाई जा रही है. सरकार का लक्ष्य अगले दो वर्षों में झारखंड को पूर्वी भारत का मत्स्य केंद्र (Fish Hub) बनाने का है.

पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संतुलन

मांगुर मछली को राज्य मछली बनाने के पीछे सरकार का उद्देश्य सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी और पारंपरिक आजीविका को सुरक्षित रखना भी है. यह कदम झारखंड के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की जीवनशैली से सीधे जुड़ा हुआ है, जो वर्षों से नदी, तालाब और झीलों पर निर्भर हैं.

झारखंड के 25 गौरवशाली वर्षों के जश्न के बीच मांगुर मछली को राज्य मछली घोषित करना न केवल एक प्रतीकात्मक कदम है, बल्कि यह राज्य की माटी, जल और मेहनतकश लोगों के साथ जुड़ी नई विकास गाथा भी है. यह पहल आने वाले वर्षों में झारखंड को मत्स्य उत्पादन और जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल कर सकती है.