देवघर (DEOGHAR ) चित्रकला किसी भी समय की सामाजिक, सांस्कृतिक या धार्मिक परंपरा और धरोहर को सहेजने की एक सशख्त माध्यम होती है. देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी ऐसी ही परंपरा, धार्मिक गतिविधियों और मान्यताओं को कला के माध्यम से कैनवास पर उकेरने का प्रयास बैद्यनाथ पेंटिंग के जरिये किया गया है. नटराज की धरती देवघर की पहचान झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी के रुप में की जाती है. शिव की इस नगरी में धर्म के साथ कला और संस्कृति को भी फलने-फूलने का भरपूर अवसर मिला है. कला के प्रति इसी समर्पण की भावना से प्रेरित हो कर बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी धार्मिक परंपराओं, रीति-रिवाजों और यहां की पौराणिक मान्यताओं को अब चित्रकला की एक विशिष्ट शैली के जरिये कैनवास पर उकेरा गया है. कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके चित्रकार नरेंद्र पंजियारा इसे बैद्यनाथ पेंटिंग के नाम से लोगों तक पहुंचाने और इसे एक अलग पहचान देने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं.


ये है खासियत

शिव बारात, यहां की कांवर यात्रा, बाबा की दैनिक श्रृंगार पूजा, रुद्राभिषेक, जलार्पण, बिल्वपत्र प्रदर्शनी, गठबंधन जैसी बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी अनेक परंपरा और धार्मिक अनुष्ठान को अलग-अलग कैनवास पर विशिष्ट शैली में चित्रों के जरिए उकेरने की कोशिश की गई है. बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी पेंटिंग की इस नई शैली को सरकार और जिला प्रशासन से प्रोत्साहित करने की अपील की जा रही है. महत्वपूर्ण जगहों पर इसकी प्रदर्शनी लगा कर बैद्यनाथ मंदिर की लोक परंपराओं से लोगों को अवगत कराने और इसे जन जन तक पहुंचाने पर भी गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया जा रहा है. साथ ही इस पेंटिंग से लोगों के लिए रोजी रोजगार का जरिया बनाने की भी मांग की जा रही है.

 पहचान बनने में कामयाब शैली

देश के कई प्रसिद्ध मंदिर की कोख से उपजी चित्रकला शैली पहले भी कला के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान कायम करने में कामयाब रही हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि बैद्यनाथ मंदिर की परंपराओं से उपजी कला की यह विशिष्ट शैली भी कला के क्षितिज पर अपनी एक अलग पहचान स्थापित करने में कामयाब होगी. यह लोगों के रोजी रोजगार का भी एक सशक्त जरिया बन कर उभरेगी.

रिपोर्ट : ऋतुराज सिन्हा (देवघर )