टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड में शोक की लहर है. भारत के प्रथम आदिवासी कार्डिनल तेलेस्फोर टोप्पो अब इस दुनिया में नहीं रहे.  उन्होंने बीते कल यानि दिनांक 4 अक्टूबर को अपनी अंतिम सांस ली है.सीएम हेमंत सोरेन ने भी इसे  लेकर शोक व्यक्त किया है. बता दे कि वह लंबी बीमारी से जूझ रहे थे. रांची के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था मगर इलाज के दौरान ही उनका निधन हो गया.

आदिवासियों के सेवा में बिताया जीवन 

कार्डिनल टोप्पो ने आदिवासियों के हित में बहुत सारे काम किए हैं. उन्होंने आदिवासियों को एक नई पहचान दिलाई है. कार्डिनल के पद पर रहते हुए उन्होंने आदिवासियों के लिए विकास से जुड़े कई बड़े काम किए. स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उनका काफी अहम योगदान रहा है. वह एक धर्मगुरु होने के बावजूद खुद को सबसे पहले एक आदिवासी बताते थे. उनका कहना था कि मैं धर्मगुरु बाद में हूं पहले मैं एक आदिवासी हूं. अक्सर उन्हें झारखंड के मुद्दों पर आवाज उठाते देखा गया है. उन्होंने अपने जीवन का सारा समय आदिवासियों की सेवा में बिताया है. लोगों को रोजगार दिलाने को लेकर तेलेस्फोर टोप्पो  ने रांची में कपड़ों का वितरण,रिक्शा वितरण जैसे कार्यक्रम की शुरुआत की जो आज भी किया जाता है. जितना ही वह अपने धर्म से जुड़े हुए थे उतना ही उन्होंने अपने राजनीतिक मुद्दों पर भी आवाज उठाई है. उन्होंने दोनों दिशा में मार्गदर्शन दिखाएं हैं चाहे वह धर्म को लेकर हो या राजनीतिक मुद्दों को लेकर.

जानिए उनके क्या थे सपने 

टोप्पो का जन्म 15 अक्टूबर 1939 में हुआ था उनका जन्म गुमला जिले के चैनपुर के एक सदूरवर्ती गांव झाड़गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम एंब्रोस टोप्पो और माता का नाम सोफिया खलको था. टोप्पो के 10 भाई बहन थे यह अपने परिवार में आठवीं नंबर पर थे. उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई संत जेवियर कॉलेज में की थी. इसके साथ ही उन्होंने अपने धर्मशास्त्र की पढ़ाई रोम के पोंटिफिकल अल्बानियन यूनिवर्सिटी से की थी. 1969 को स्विट्जरलैंड में उनका पुरोहिता अभिषेक हुआ था. इसके बाद से ही बतौर सहायक शिक्षक तौर पर उन्होंने संत जोसेफ स्कूल में कार्य शुरू किया. उनकी पहचान तब से बढ़ी जब 1978 में कौन है दुमका का बिशप बनाया गया.  7 अगस्त 1985 को रांची आर्चबिशप के रूप में उन्होंने अपनी सेवा दी. इसके बाद 21 अक्टूबर 2003 को उन्हें कार्डिनल बनाया गया. बतौर कार्डिनल उन्होंने कई सपनों को पूरा किया. वहीं कुछ सपने उनके अब भी अधूरे रह गए. वह चाहते थे कि रांची में एक इंजीनियर रिंग और लॉ कॉलेज बने ताकि यहां के अभ्यर्थियों को किसी तरह की समस्या ना हो. वही उनका हमेशा से यह सपना था कि मसीहा समुदाय के लोग हर क्षेत्र में आगे प्रदर्शन करते दिखे  मगर इससे पहले ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.