रांची (RANCHI):हूल दिवस झारखंड के लोगों के लिए बहुत खास दिन माना जाता है. इस दिवस पर राजनीतिक और सामाजिक आपसे जुड़े लोग इस पावन स्थल को नमन करने जाते हैं.    

अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के सिपाही विद्रोह से पहले का एक बड़ा आंदोलन

संथाल परगना के साहिबगंज में स्थित भोगनाडीह वह पावन भूमि है जहां इस तरह का आंदोलन आरंभ हुआ. अंग्रेजों के खिलाफ हुए इस आंदोलन हजारों लोग शामिल हुए.
 यह विडंबना है कि आधुनिक भारत के स्थापित इतिहासकारों ने इस आंदोलन की महज चर्चा की, ना कि उन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया. जबकि यह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के सिपाही विद्रोह से पहले का एक बड़ा आंदोलन था. इतिहासकारों ने इस सच्चाई की अनदेखी की.

 करो या मरो, अंग्रेजों मेरी माटी छोड़ो".

अंग्रेजों ने संथाल परगना क्षेत्र में यहां के निवासियों से मालगुजारी वसूलना शुरू किया और यह वसूली प्रताड़ना के रूप में बढ़ती ही जा रही थी. संथाल के लोग परेशान हो गए थे. तभी सिद्धो कान्हू नामक दो सहोदर भाई मानो अवतरित हुए. अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ संतालों को एकजुट किया जाने लगा. 30 जून,1855 को भोगनाडीह में एक विशाल सभा का आयोजन हुआ, जिसमें लगभग 50 हजार लोग विभिन्न क्षेत्रों से इकट्ठा हुए. अंग्रेजों के होश उड़ गए. एक नारा बड़ा प्रसिद्ध निकला "करो या मरो, अंग्रेजों मेरी माटी छोड़ो". मालगुजारी नहीं देने का संकल्प लिया गया. जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने के लिए संथाल उद्वेलित थे.

विद्रोह में लगभग 20000 लोग मारे गए

बंदूकों से अंग्रेजी पुलिस के खिलाफ तीर धनुष जैसे परंपरागत हथियार के साथ आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू की. इस मुखालफत को देखते हुए अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों का दमन शुरू कर दिया. इतिहासकारों के अनुसार संस्थानों के इस विद्रोह में लगभग 20000 लोग मारे गए. उन्हीं की याद में यह 'हूल दिवस' मनाया जाता है.

हूल दिवस बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. राजनीतिक रूप से भी यह स्थान बड़ा पावन माना जाता है.यहां पर श्रद्धांजलि देने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री आते हैं. एक बड़ा आयोजन यहां पर होता है.