रांची(RANCHI): झारखंड भारत का एकमात्र राज्य है, जहां ओझा और डायन बताकर लोगों को मार दिया जाता है. दरअसल, इसमें गौर करने वाली बात ये है कि उन्हें कोई और नहीं बल्कि उनके गांववाले, परिवारवाले ही पीट-पीटकर मार डालते हैं और ऐसा करने के बाद भी उनलोगों को जरा भी अफसोस नहीं होता है. आज भारत चांद तक पहुंच चुका है. महिलाएं हर क्षेत्र में ना सिर्फ पुरुषों की बराबरी कर रही हैं बल्कि उन्हें पीछे छोड़कर नयी गाथा लिख रही हैं. बावजूद इसके झारखंड में महिलाओं को डायन बताकर मार दिया जाता है. 

झारखंड में ऐसे मामले हर हफ्ते और महीने में सुनने को मिल जाते हैं. झारखंड यानी की ‘जंगलों का प्रदेश’ जहां की ज्यादातर आबादी आदिवासी है. यहां की सरकार भी अपने आप को आदिवासी हितैसी सरकार बताती रही है. लेकिन ये तथ्य आपको सोचने पर मजबूर कर देगा की क्या राज्य की सरकार सच में आदिवासी हितैसी है या सिर्फ सत्ता पाने के लिए वो अपने आप को आदिवासियों की हितैसी बताती है. दरअसल, डायन और ओझा बताकर मरने वाले लोगों में ज्यादातर आदिवासी समुदाय के ही होते हैं. इतना ही नहीं उन्हें बेरहमी से पीटकर मारने वाले भी उनके ही लोग होते हैं. पिछले कुछ सालों में डायन बताकर सैकड़ों लोगों को मार दिया गया है. लेकिन झारखंड सरकार आजतक उन आरोपियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की है. शायद यही वजह है कि उनका मनोबल दिनों-दिन और बढ़ता जा रहा है. सरकार किसी आरोपी को कड़ी सजा देती तो वो राज्य के लिए एक मिसाल होती और ऐसी घटना को अंजाम देने से पहले आरोपी और ढ़ोंगी सैकड़ों बार सोचते.

सितंबर 2022 में 3 महिलाओं की डायन बता हुई हत्या
ताजा मामला सोनाहातू थाना क्षेत्र का है. जहां 03 सितंबर 2022 को तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. वहीं, शव को गांव से 25 किलोमीटर दूर जंगल और पहाड़ के बीच फेक दिया था. इस मामले में पुलिस ने अभी तक कुल 15 लोगों को गिरफ्तार किया है लेकिन उन पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस हत्या में पूरा का पूरा गांव मिला हुआ था. पुलिस आरोपियों पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है, जिससे ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधी मानसिकता वाले लोगों के मन में डर बैठ सके. 

जागरुकता में सरकार के करोड़ों रुपए होते हैं खर्च
डायन और ओझा जैसे मामले से निजात पाने के लिए राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है. बता दें कि राज्य सरकार हर साल 1 करोड़ 20 लाख नुकड़, लोकल नाटक, गांव की बैठक और टीवी में इसके लिए प्रचार पर खर्च करती है. लेकिन अभी तक इन सभी अभियानों से सरकार को उतनी सफलता हाथ नहीं लगी है, जितनी उन्हें उम्मीद थी. 

2019 में सबसे ज्यादा डायन-बिसाही के मामले सामने आए
पिछले पांच साल (2015-20) की डायन-बिसाही से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो 4 हजार 556 मामले दर्ज किए गए हैं. इसमें हत्या से संबंधित 272 मामले दर्ज हैं, जिसमें 215 महिलाओं की हत्या कर दी गई. बता दें कि यह आकड़े गृह विभाग की ओर से जारी की गई है. डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत वर्ष 2015 में 818 मामले दर्ज किए गए. वहीं, वर्ष 2016 में 688 मामले, 2017 में 668, वर्ष 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किए गए हैं. अगर रोजाना के हिसाब से देखें तो झारखंड में 2 से ज्यादा मामले डायन-बिसाही का होता है. ये सप्ताह में 10 से ज्यादा हो जाता है. डायन-बिसाही की वजह से साल में 50 से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ती है. इनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल होती हैं. इसका मतलब ये हुआ कि महीने में 4 लोगों की जान डायन-बिसाही की वजह से जाती है.

सरकार के खर्च जमीन तक नहीं पहुंचते: छूटनी देवी

पद्मश्री छूटनी देवी डायन प्रथा में हो रही हत्याओं के लिए सरकार को जिम्मेदार मानती है. छूटनी देवी का मानना है कि ऐसी घटना अंधविश्वास के कारणों से घटती है. इसे रोकने के लिए सरकार को ग्रामीण स्तर पर जागरुकता अभियान चलाने की जरुरत है. फिलहाल भी सरकार करोड़ों रूपये जागरुकता पर खर्च करने का दावा करती है. लेकिन पैसे कहां खर्च करती है, यह भी सोचनीय है. इसे रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों के वैसे पंचायत जहां घटनाएं पहले हुई है. उस पंचायत में एक-एक पुलिस चेक पोस्ट बनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जो इस घटना को अंजाम देते है. उसमें सभी अशिक्षित होते है.