धनबाद(DHANBAD): मास्टर प्लान के बाद ,संशोधित मास्टर प्लान बावजूद हर बरसात की तरह इस बरसात भी  कोयले की राजधानी धनबाद का एक कुरूप चेहरा दिख रहा है.    इस कुरूप  चेहरे को ठीक करने के लिए   योजनाएं तो बनती है, लेकिन क्रियान्वित होने में बहुत विलंब होता है.  धनबाद कोयलांचल में बारिश ने जो कहर बरपाया  है.  उसका  असर यह हुआ है कि कई इलाके दम घोंटू  गैस से प्रभावित है.  1919 में पहली बार कोयलांचल  में भूमिगत आग  का पता चला था.  उसके बाद से 106 साल बीत गए, लेकिन अभी भी "आग बुझाओ- आग बुझाओ ,प्रभावित लोगों को पुनर्वासित करो- पुनर्वासित करो" का खेल चल रहा है.  

20 से 22 दिनों से लगातार कोयलांचल  में हो रही बारिश

पिछले 20 से 22 दिनों से लगातार कोयलांचल  में हो रही बारिश ने कोयलांचल के कुरूप चेहरे को सामने लाकर खड़ा कर दिया है.  इलाके में रहने वाले लोगों का दम घुट रहा है.  पूरा कोयलांचल गोफ  और धसान  की चपेट में है. कोयलांचल  के कई इलाकों में बारिश का कहर  लोगों पर समस्या बनकर टूटा है.  बांसजोड़ा , सिजुआ  इलाके में पांच घर जमींदोज  हो गए.  घर में रहने वाले लोग बेघर हो गए है.  बांस जोड़ा  12 नंबर में गैस रिसाव हो रहा है.   लोगों का जीना मुहाल हो गया है.  सिजुआ  इलाके में भी कई जगहों पर गोफ , दरार और धंसान  की घटनाएं हुई है. 

कई इलाके दमघोंटू गैस से प्रभावित ,धंसान भी जारी 

 जोगता  15 नंबर बस्ती में एक दिन पहले अचानक जोरदार आवाज के साथ घर का दीवार टूट गया.  इस घर में रहने वाले लोग  उस दिन दूसरी जगह सो रहे थे.  अन्यथा उनकी जान पर भी खतरा हो सकता था. 2009 में झरिया पुनर्वास के लिए पहली बार मास्टर प्लान की मंजूरी दी गई थी. इस पर 7112.11 करोड़ रुपए अनुमानित खर्च की योजना थी. फिर 2025 के जून महीने में 59 40 करोड़ रुपए की संशोधित मास्टर प्लान को मंजूरी मिली है. बावजूद इस बरसात धनबाद कोयलांचल पूरी तरह से धंसान और गोफ की चपेट में है. लगातार बैठकों का दौर जारी है. पुनर्वास की प्रतीक्षा में लोग जान जोखिम में डालकर अग्नि प्रभावित इलाकों में रह रहे है. 

वर्ष 1916 में पहली बार चला था भूमिगत आग का पता 

कहा जा सकता है कि धनबाद कोयलांचल धंसान और गोफ की  चपेट में आ गया है. झरिया कोयला खदान में आग लगने की पहली घटना वर्ष 1916 में सामने आयी थी. इसके बाद जमीन के नीचे आग लगने के कई मामले सामने आए. कोयला खदानों के वर्ष 1971 में राष्ट्रीयकरण से पहले इन खदानों में खनन का काम निजी कंपनियां करती थी. निजी कंपनियां सुरक्षा मानकों का विशेष ध्यान नहीं रखती थी. झरिया कोयला खदान में आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 1978 में पोलैंड और भारत के विशेषज्ञों की उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया. समिति की रिपोर्ट में उस समय कहा गया था कि झरिया क्षेत्र में 41 कोयला खदानों में 77 आग लगने के मामले का पता चला  है. झरिया कोयला खदान का काम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के जिम्मे है.

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो