Tnp desk: सियासत एक नशा है, जो वक़्त पड़ने पर कुर्बानी मांगती है. यहां कोई किसी का सगा नहीं होता, बल्कि इसकी आंधी में सवार होकर सब अपने मकसद में कामयाब होने के फिराक में फितूर पाले रहते है. मौज़ूदा वक़्त में सबसे ताज़ा और सटीक उदाहरण दुमका लोकसभा सीट को देखिए, समझिए और परखिए. इससे पता चलेगा कि सियासत आखिर क्या चीज है
अपनों से लोहा लेगी सीता!
सोरेन परिवार की बागी बहू बनीं सीता सोरेन दुमका के अखाड़े में अपनों से ही लोहा लेने के लिए तैयार है. दुमका की इस सीट पर शिबू सोरेन परिवार का दबदबा और वजूद पिछले तीन दशक से ज्यादा वक़्त से है और आज तक क़ायम है . हालांकि बीजेपी ने बीच -बीच में सेंधमारी जरूर की है. लेकिन, सोरेन परिवार की संथाल की इस मिट्टी में गहरी पकड़ को कभी ढिली नहीं कर सकी.
जेएमएम का कौन होगा उम्मीदवार ?
अभी झंझावतों से जूझ रहे सोरेन परिवार से दुमका में उम्मीदवार कौन होगा सवाल है, क्योंकि अभी तक जेएमएम ने पत्ते नहीं खोले है. इसबार दिशोम गुरु शिबू चुनाव लड़ते हैं या नहीं ये प्रश्न चिन्ह बना हुआ हैं. क्योंकि बढ़ती उम्र इसमे रोड़ा अटका रही हैं. हालांकि मुश्किल वक्त में शिबू सोरेन चुनाव लड़ सकते हैं. इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता. अगर शिबू मैदान में उतरते हैं, तो फिर दुमका का दंगल ससुर और बहू के बीच हो जायगा.
क्या हेमंत और सीता के बीच होगी भिड़ंत ?
अगर शिबू सोरेन नहीं लड़कर उनके दूसरे बेटे हेमंत सोरेन लड़ते हैं, तो मुकाबला बेहद दिलचस्प बन जायेगा. अभी पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कथित जमीन घोटाले के आरोप में जेल में बंद हैं. माना जा रहा हैं कि हेमंत जेल से ही चुनाव लड़ेंगे और सहानुभूति की लहर उनके पक्ष में बहेगी. अगर हेमंत लड़ते हैं तो फिर उनके सामने भाभी सीता सामने होगी. दुमका में पहली बार होगा की देवर- भाभी के बीच मुकाबला होगा.
कल्पना बनाम सीता ?
अगर हेमंत की जगह उनकी वाइफ कल्पना सोरेन अपना पहला चुनाव दुमका से लड़ती हैं, तो फिर ये घमासान और भी परवान पर होगा. क्योंकि यहां दो गोतनियों की घर की लड़ाई चुनावी अखाड़े में सियासी हो जाएगी. यहां याद रखने की बात ये हैं कि जब कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा थी, तो उस दरमियान सीता सोरेन के मुख़ाल्फत की खबर जोर से आई थी. दुमका के दंगल में अगर भिड़त कल्पना बनाम सीता की होगी तो सबसे दिलचस्प मुकाबला होगा.
इस बीच दुमका की जनता का आशीर्वाद किस बहू को मिलेगा. ये भी देखना अपने आप में अलग होगा.
सीता के सामने बड़ी चुनौती
तीसरा पहलू ये भी हैं, कि अगर सोरेन परिवार से अलग हटकर कोई उम्मीदवार होता हैं, तो फिर ये लड़ाई थोड़ी फीकी होगी. शायद इसमे बाजी सीता सोरेन मरने में कामयाब हो जाए.
लेकिन, यहां सवाल हैं सीता दुमका के इम्तिहान को कमल फूल के सहारे उस तीर कमान से कैसे सामना करेगी?. क्या इस सियासी लड़ाई में खुद को स्थापित कर पायेगी. क्या संथाल की जनता, उन्हें अपना मत देगी?. क्योंकि, अब घर -घर के अंदर की लड़ाई सियासी अखाड़े में आ गई हैं. यहां, वो जिस पार्टी से चुनावी मैदान में उत्तरी हैं, उसके लिए खोने के लिए कुछ नहीं हैं, बल्कि पाने के लिए ही हैं. यहां तो सबसे बड़ा सवाल सीता के लिए, क्योंकि घर से बगवात करके ऐसी लड़ाई चुनी हैं, जहाँ उसे हर हाल में साबित करना हैं. उसके लिए पीछे लौटना कांटों भरी राह होगी, क्योंकि अब सीता का राम की पार्टी में जाना, एक तरह से साफ हो गया हैं कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा में अब उनके देवर हेमंत सोरेन का ही वर्चस्व होगा. लिहाजा राजनीति की इस बिसात में सीता घिरी हुई है. जहां उनकी लड़ाई गैरों से नहीं बल्कि अपनों से है.
फिलहाल, दुमका का रण ही सबसे बड़ी चुनौती है. जहां जीत का इम्तिहान पास करने के लिए पसीना तो बहाना होगा, क्योंकि जनता जनार्दन तो वही है, बस सिंबल बदला हुआ है, तीर कमान की जगह कमल फूल है.
रिपोर्ट - शिवपूजन सिंह
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