टीएनपी डेस्क(TNP DESK): भाजपा की अटल बाजपेयी की सरकार 2002 में एक कानून बनाती है. नाम होता है PMLA. मगर, इस कानून को और भी धार देकर लागू करती है 2005 में मनमोहन सरकार. उस समय मनमोहन सरकार के वित्त मंत्री थे पी. चिदंबरम. अब सवाल होगा कि PMLA क्या है और हम यहां इसकी क्यों जिक्र कर रहे हैं. बताते हैं..... 

दरअसल, PMLA का फुल फॉर्म है - Prevention of Money Laundering Act. मतलब कि वो कानून जो मनी लाउंड्रिंग को रोकने के लिए बनाया गया था. इस कानून के जरिए एक केन्द्रीय एजेंसी को इतना पॉवर दे दिया जाता है कि उसे देश के किसी भी व्यक्ति चाहे वो कोई नेता या मंत्री ही क्यों ना हो, उसे गिरफ्तार करने या उसके यहां छापा मारने या उसकी प्रॉपर्टी जब्त करने के लिए इस एजेंसी को किसी भी सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है. इस एजेंसी का नाम है ED, यानी कि Enforcement Directorate हिन्दी में प्रवर्तन निदेशालय.

आज जिक्र क्यों?

पहले हम ये बताते हैं कि आज हम इस एजेंसी का जिक्र क्यों कर रहे हैं. इसका कारण है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ED की पूछताछ. ये पूछताछ सिर्फ इन्ही दो नेताओं तक सीमित नहीं है. इसमें कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के साथ कई नेताओं के नाम शामिल है. राहुल गांधी से जब ED  ने पूछताछ की तो पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ता सड़क पर उतर आये. जगह-जगह विरोध प्रदर्शन करने लग गए. राहुल गांधी हो या पी चिदंबरम किसी भी कांग्रेसी नेता ने ये नहीं सोच होगा कि जिस कानून को उन्होंने लागू किया था वे ही इसकी चंगुल में फंस जाएंगे. बाकी का तो पता नहीं मगर, पी. चिदंबरम ने तो जरूर ऐसा नहीं सोचा होगा. क्योंकि 2005 में वे ही वित्त मंत्री थे, जिन्होंने ये कानून लागू किया था. ED ने पिछले 17 सालों में 3,000 से भी ज्यादा छापेमारी की है, वहीं 5,000 के करीब केस रजिस्टर्ड किया है. मगर, इन 17 सालों में मात्र 23 मामलों में ही आरोपी को सजा हुई है.      

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बाकी एजेंसियों से क्यों अलग है ED?

अब सवाल ये उठता है कि क्या ED इस PMLA कानून के पहले नहीं थी, या कोई और एजेंसी नहीं है जो ED को इतना पॉवर दे दिया गया. तो जवाब है कि ED पहले भी था. ED की स्थापना तो 1 मई 1956 को ही हो गई थी. मगर, इसके किस्से पिछले 10 सालों से ही ज्यादा सुने गए हैं. वहीं देश में CBI और NIA जैसी और एजेंसी भी हैं, मगर इनकी शक्तियां सीमित हैं. अगर, सीबीआई की बात करें तो दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत बनी CBI को अगर किसी भी राज्य में कार्रवाई के लिए घुसना है तो उसे उस राज्य की अनुमति लेनी जरूरी होती है. बिना राज्य सरकार के अनुमति के CBI किसी राज्य में नहीं घुस सकती. 2020 में देश के आठ राज्यों ने सीबीआई को अपने राज्य में घुसने पर रोक लगा दी थी. इसमें पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम जैसे राज्य शामिल थे. इन राज्यों में सीबीआई नहीं घुस सकती. हां, अगर कोर्ट आदेश देती है तो सीबीआई राज्य सरकार के अनुमति के बिना घुस सकती है.

ED को कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति की भी जरूरत नहीं

वहीं अगर सीबीआई को किसी डिपार्ट्मेन्ट के अफसरों पर करप्शन का मुकदमा चलाना है तो पहले उसे डिपार्ट्मेन्ट से पर्मिशन लेना पड़ता है. वहीं NIA की बात करें तो NIA देश में कहीं भी कार्रवाई कर सकती है. मगर, तभी तक जब तक मामला आतंक से जुड़ा हो. मगर, ED देश में कहीं भी मनी लौंडरिंग के किसी भी मामले में कार्रवाई कर सकती है. वह किसी के यहां भी रेड डाल सकती है. किसी की भी प्रॉपर्टी जब्त कर सकती है और उसे इन कार्रवाई के लिए सरकार की भी अनुमति नहीं है.