टीएनपी डेस्क (TNP DESK): छह भाषाओं के जानकार, भारतीय उपमहाद्धीप के दिग्गज लेखक गोपीचंद नारंग ने बीती रात करीब 11 बजे 91 साल की उम्र में अमेरिका में आख़िरी सांस ली. उनकी किताबें हिंदी और अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुईं, लेकिन पहचान उन्हें उर्दू के लेखक के रूप में ही मिली. हर रचनाकार की तरह उन्होंने भी पहले कविता लिखनी शुरू की, बाद में आलोचना को अपना हथियार बनाया. उनका जन्म बलूचिस्तान (पाकिस्तान) के एक शहर दुक्की में 11 फ़रवरी 1931 को हुआ था. इनके पिता धर्म चंद नारंग फ़ारसी और संस्कृत के विद्वान थे.
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60 से अधिक पुस्तकें
दिल्ली के कारीगर और मजदूरों के बीच बोली जाने वाली कारखंडारी बोली पर उनकी पहली किताब 1961 में प्रकाशित हुई थी. उसके बाद तो तांता लग गया. उर्दू, इंग्लिश और हिंदी में 60 से अधिक पुस्तकें उनकी आईं और दर्जनों ने अदब की धारा में हलचल पैदा की. जिसमें हिंदुस्तानी लोक से माखूज़ उर्दू मसनवियाँ, उर्दू ग़ज़ल और हिंदुस्तानी ज़ेहन-ओ-तहज़ीब, हिंदुस्तान की तहरीक-ए-आज़ादी और उर्दू शायरी, अमीर खुसरो का हिंदवी कलाम, सनिहा-ए-करबला बतौर शेरी इस्तिआरा, उर्दू ज़बान और लिसानियत, साख़्तियात पस साख़्तियात और मशरीक़ी शेरियात उल्लेखनीय हैं.
अध्ययापन और सम्मान
आपने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मिनेसोटा विश्वविद्यालय, ओस्लो विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया. वहीं अदब की ख़िदमत (सेवा) दिल्ली उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष, उर्दू फ़रोग़ कॉउंसिल ( एचआरडी) के उपाध्यक्ष और साहित्य अकादमी के बतौर अध्यक्ष रहते की. इनाम-सम्मान की गिनती बहुत मुश्किल है. शायद कोई बड़ा सम्मान हो जो इनके दामन को मयस्सर न हुआ हो. पद्म भूषण, पद्म श्री, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ग़ालिब पुरस्कार, इक़बाल सम्मान, पाकिस्तान का सितारा-ए-इम्तियाज़, मूर्ति देवी पुरस्कार और सर सैयद उत्कृष्टता राष्ट्रीय पुरस्कार आदि के नाम लिए जा सकते हैं.
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