धनबाद (DHANBAD) : बिहार की चुनावी राजनीति क्या बदलेगी ? कौन है प्रशांत किशोर उर्फ़ पीके, जिनसे खतरा पार्टियों को दिखने लगा है. प्रशांत किशोर उर्फ पीके चुनावी रणनीतिकार से अब वह राजनेता बन गए है. लगातार 3 साल तक बिहार के गांव-गांव की खाक छानने के बाद 2 अक्टूबर 2024 को उन्होंने जनसुराज नामक पार्टी का गठन किया. प्रशांत किशोर का दावा है कि वह अब तक देश के 12 मुख्यमंत्री को सत्ता तक पहुंचने में अपना कंधा लगाया है. भाजपा के तीन बड़े नेताओं पर उन्होंने गंभीर आरोप लगाकर परेशानी पैदा कर दी है. वह कह रहे हैं कि काम तो वह पहले की तरह ही चुनावी रणनीतिकार का कर रहे हैं, लेकिन तरीका थोड़ा अलग है. 

बिहार के बक्सर के रहने वाले है प्रशांत किशोर उर्फ़ पीके 
 
बिहार के बक्सर में जन्मे प्रशांत किशोर के पिता डॉक्टर थे. वह लोगों से अपील कर रहे हैं कि खुद के लिए नहीं, बच्चों की शिक्षा के लिए,बिहार को बदलने के लिए 2025 में वोट करे. उन्हें  समर्थन भी मिल रहा है. यह अलग बात है कि बिहार चुनाव में पीके की पार्टी की  एंट्री से केवल एनडीए में ही हलचल नहीं है बल्कि महागठबंधन में भी परेशानी है. प्रशांत किशोर की सभा में भीड़ उमड़ रही है. सोशल मीडिया पर भी उनको समर्थन मिल रहा है. कुछ समय पहले तक प्रशांत किशोर को बिहार के चुनाव में मजबूत ध्रुव नहीं माना जा रहा था. लेकिन अब उनकी लोकप्रियता और लोगों का झुकाव बढ़ता जा रहा है. कहा तो यह भी जा रहा है कि एनडीए और महागठबंधन के बाद उनकी पार्टी एक नए विकल्प के रूप में उभरी है. वह अपनी सभा में ऐसी वह सभी बातें उठाते हैं, जिसे बिहार के युवा प्रभावित होते दिख रहे है.  

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के इर्द -गिर्द घूमती रही है बिहार की राजनीति 

बिहार की राजनीति लंबे समय से लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूम रही है.  1990 में लालू प्रसाद का बिहार में जबरदस्त तरीके से उदय हुआ तो 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और उसके बाद से किसी न किसी रूप में वह बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए है.  दरअसल, बिहार की राजनीति दो गठबंधनों के बीच लंबे समय से घूम रही है.  एनडीए का मतलब हुआ भाजपा, जदयू, हम और चिराग पासवान की पार्टी ,जबकि महागठबंधन में राजद , कांग्रेस, माले  और वीआईपी पार्टी है.  प्रशांत कुमार ने  एंट्री ली तो कहा जाने लगा था कि वह ब्राह्मण जाति से आते है.  इसलिए उन्हें कोई सफलता नहीं मिलेगी.  लेकिन आज वह स्थिति नहीं है. प्रशांत  किशोर महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और लोहिया की विचारधारा को अपनाकर आगे बढ़ रहे है.  यह जातिवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण से अलग की विचारधारा है.  

मुस्लिम मतदाताओं पर भी है पीके का फोकस, 40 प्रतिशत उम्मीदवार की कही है बात  

प्रशांत किशोर ने मुस्लिम मतदाताओं को भी अपने ढंग से फोकस  किए हुए है. उन्होंने 40% मुस्लिम उम्मीदवारों  को चुनाव में उतारने का ऐलान किया है.  यह बात तो तय है कि लगभग 20 वर्षों से नीतीश कुमार लगातार बिहार के मुख्यमंत्री है. कुछ अवधि को माइनस कर दिया जाए तो भाजपा भी उनके साथ है. अगर एंटी इनकंबेंसी के असर को प्रशांत किशोर की पार्टी बटोर लेती है, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पहले लालू प्रसाद से नाराज लोग नीतीश कुमार के पाले में जाते थे और नीतीश कुमार से नाराज लोग लालू प्रसाद की पार्टी की ओर झुक जाते थे. लेकिन अब उन्हें तीसरा विकल्प भी मिल जाएगा. यह बात तो तय है कि अगर मुस्लिम मतदाताओं को गोलबंद करने में प्रशांत किशोर सफल हुए तो महागठबंधन को भी नुकसान हो सकता है. अब तक ऐसा देखा गया था कि बिहार में नीतीश  सरकार से नाराज लोग एक मुश्त महागठबंधन को वोट देते थे.  पर अब उनके सामने दो विकल्प है. 

एनडीए-महागठबंधन से नाराज लोग जनसुराज की ओरे जा सकते है 
 
नीतीश सरकार से नाराज लोग  प्रशांत किशोर के साथ भी जा सकते है. ऐसे में महागठबंधन को भी नुकसान होना तय माना जा रहा है. दूसरी ओर एनडीए को भी नुकसान हो सकता है. प्रदेश के सवर्ण  लोग यह मानकर चल रहे हैं कि अब उनकी जाति के हाथ में बिहार की बागडोर नहीं आएगी. ऐसे लोग अब प्रशांत किशोर में अपना भविष्य देख सकते है. सवर्ण लोग भाजपा के साथ तो हैं, पर उन्हें अब यह लगने लगा है कि पार्टी में केवल ओबीसी और दूसरे लोगों की  ही पूछ बढ़ने वाली है. यही कारण है कि सवर्ण जातियों के युवा प्रशांत किशोर के साथ जुड़ने लगे है. प्रशांत किशोर ने तो दावा कर दिया है कि 2025 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनेगे. बिहार में बदलाव होगा और जनसुराज की नई व्यवस्था बनेगी. हालांकि बिहार चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गंभीर हैं, तो महागठबंधन के नेता भी जोर-शोर  से लगे हुए है. वोटर अधिकार यात्रा से महागठबंधन को कितना लाभ मिलेगा, यह अभी देखने वाली बात होगी.

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो