धनबाद(DHANBAD):  कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद धनबाद कोयलांचल में कोलियरियों  पर "कब्ज़ा"  के लिए लड़ाई होती थी.  कत्ल होते थे, दबंगई की जाती थी , माफियागिरी की जाती थी.  लेकिन कोयला कंपनियों में आउटसोर्स सिस्टम  के प्रवेश के बाद "दबंगई" का तरीका बदल गया .  अब सीधे-सीधे लड़ाई कम होती है, "महीनचाल"  चली जाती है.  वैसे दबंगो की कमाई में कोई अंतर नहीं आया है.  पहले कोलियरी कर्मियों को मेंबर बनाने के नाम पर "दबंगई" होती थी और अभी अपने-अपने क्षेत्र की आउटसोर्सिंग कंपनियां को "दबाव" में रखकर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रंगदारी वसूली के लिए होती  है.  यह काम सभी दल और पार्टी के लोग करते है.  जिनके इलाके में आउटसोर्सिंग कंपनियां चलती हैं, वहां या तो वह "साइलेंट पार्टनर" बन जाते हैं अथवा दूसरे तरीकों से रंगदारी देने के लिए कंपनियों को मजबूर  करते है.  

बीसीसीएल के अधिकारियों पर भी लगते रहते है आरोप 

अगर आउटसोर्स कंपनियां के क्रियाकलाप और बीसीसीएल के अधिकारियों की उनपर बरदहस्त  की एक बार मजबूती से जांच हो जाए, तो कई ऐसे तथ्य बाहर आएंगे, जिन्हें सुन- जानकर हर कोई परेशान हो जाएगा.  सैकड़ों  के चेहरे से "मुखौटा" उतर जाएगा.  एक समय था, जब धनबाद में कंस्ट्रक्शन के काम में "मुखौटा" का कॉन्सेप्ट डेवलप हुआ था.  अभी भी यह काम हो रहा है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि आउटसोर्स कंपनियों में फिलहाल "मुखौटा" बनने की होड़ मची हुई है.  इसमें छोटे नेता भी शामिल हैं, तो बड़े नेता भी शामिल है. पार्टी और विचारधारा का कोई भेद नहीं है.  इसमें छोटे दबंग भी शामिल है तो बड़े-बड़े दबंग भी खुद को शामिल किए हुए है.  

रंगदारी वसूली के खेल में छोटे -बड़े सभी नेता रहते है शामिल 

आउटसोर्सिंग कंपनियां को भी यह  रास्ता सही लगता है.  क्योंकि उनकी कमाई तो अफरात  है.  इस कमाई में कुछ हिस्सा रंगदारों को देने से उन्हें आर्थिक नुकसान नहीं होता.  इसके अलावे छोटे-बड़े रंगदारों से संपर्क करने के लिए यह कंपनियां एक "लाइजनिंग" अफसर भी नियुक्त करती है.  यह अफसर भी इलाके के दबंग ही होते हैं और फिर दबंग- दबंग, भाई- भाई की नीति पर काम होता है.  9 जनवरी को जब बाघमारा में खरखरी  कांड हुआ था, तो ऐसा लगने लगा था कि आउटसोर्सिंग कंपनियों की करतूत का खुलासा होगा.  9 जनवरी को हिलटॉप आउटसोर्सिंग कंपनी के विवाद में खुलकर गोली -बंदूक चले थे.  दबंगई का नंगा नाच हुआ था.  पुलिस के बड़े अधिकारियों को धनबाद आना पड़ा था.  उसके बाद छापेमारी शुरू हुई.  एफआईआर  दर्ज की गई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. 

धमकाने का वीडियो वायरल होने के बाद शुरू हो गई है नई चर्चा 

 फिर उसी आउटसोर्सिंग कंपनी को लेकर धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो  का   हिल टॉप आउटसोर्सिंग कंपनी  के डायरेक्टर को  धमकाने का एक वीडियो वायरल हुआ.  यह वीडियो धनबाद से लेकर रांची तक पंहुचा. सांसद ढुल्लू महतो पर आरोप था कि पुलिस अधिकारियों की  मौजूदगी में उन्होंने आउटसोर्स कंपनी के अधिकारी को धमकाया, थप्पड़ मार कर मुंह तोड़ने की धमकी दी.  उन्हें मीटिंग से बाहर करने का आदेश दिया.  हालांकि इस वायरल वीडियो की पुष्टि The Newspost नहीं करता है.  लेकिन इसके बाद कोयलांचल  में एक नए ढंग की चर्चा छिड़ गई है.  कहा तो यही जाता है कि हिलटॉप आउटसोर्सिंग कंपनी को लेकर ही भाजपा सांसद ढुल्लू महतो   और आजसू  सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी के बीच "शीत युद्ध" शुरू हो गया है.  दोनों एक ही तरह के आरोप लगा रहे हैं, कोई धरना दे रहा है तो कोई मीटिंग कर रहा है. कोई लोकल अधिकारियो से बात कर रहा है तो कोई सीएमडी से बतिया रहा है. 

धनबाद कोयलांचल के सभी जगहों पर होता है एक जैसा खेल 
 
यह  बात  सिर्फ बाघमारा क्षेत्र की हुई, लेकिन धनबाद का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां आउटसोर्सिंग कंपनियां और राजनीतिक दल के छोटे-बड़े नेताओं के बीच "साइलेंट पार्टनर"  का खेल नहीं चल रहा है. सब जगह का एक ही हाल है.  कहीं विवाद बढ़ने पर मामला जमीन पर दिखने लगता है और कहीं भीतर ही भीतर सब कुछ "खेल" किया जाता है.  बता दें कि भारत कोकिंग कोल लिमिटेड  की 90% कोयला उत्पादन फिलहाल आउट सोर्स कंपनियों के भरोसे  है.  इसकी देखरेख की जिम्मेवारी बीसीसीएल की है, लेकिन बीसीसीएल के अधिकारी भी आउटसोर्स कंपनियों की पीठ पर हाथ रखने से परहेज नहीं करते.  आउटसोर्स कंपनियों को परेशान और तबाह करने के लिए मजदूरों की आड़ ली जाती है.  बाद मजदूरों की सुख -सुविधा की होती है लेकिन इसके पीछे सच्चाई कुछ और होता है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो