पलामू(PALAMU): रमजान के तीसरे अशरे की शुरुआत 21 मार्च की शाम से हो गई है. भाई बिगहा बड़ी मस्जिद हैदरनगर के पेश इमाम मौलाना अहमद अली खान रजवी के साथ तीन अन्य अरबाज खान, हलीम खान और जलाल अंसारी इत्तेकाफ़ में बैठ गए हैं. मौलाना अहमद अली खान रजवी ने समाज के लोगों से तीसरे अशरे में नमाज अदा करने के साथ ही कुरान ए पाक की तिलावत ज्यादा से ज्यादा करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि रोजेदार अपने गुनाहों से तौबा करें. मस्जिदों में हर उम्र के बा शोऊर लोग इत्तेकाफ़ पर बैठ सकते हैं. इस दौरान इबादत में व्यस्त रहेंगे. दस दिनों के दौरान एकांत में रहकर अल्लाह की इबादत की जाएगी.
उन्होंने कहा कि हर मुसलमान को अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार इत्तेकाफ़ करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मर्द मस्जिदों में और औरतें अपने घर के ही एक कमरे में इत्तेकाफ़ कर सकती हैं. इसमें दो हज और दो उमरा का सवाब मिलता है. उन्होंने कहा कि रमजान के आखिरी अशरे में इत्तेकाफ़ करना पैगंबर ए इस्लाम की सुन्नत है. उन्होंने बताया कि माल की जकात अदा करें, सदका-ए-फित्र दें और जरूरतमंदों की ज्यादा से ज्यादा मदद करें. उन्होंने कहा कि शबे-ए-कद्र जुमा शाम से ही शुरू हो गई है. रमजान उल मुबारक की 21,23,25,27 और 29 को रात भर इबादत में गुजारें. इसका बहुत सवाब है.
इत्तेकाफ़ में बैठने वाले दस दिनों तक दुनियावी झंझटों से रहेंगे दूर: मौलाना
इत्तेक़ाफ में बैठने वाले तैयारियां शुरू कर शुक्रवार की शाम से मस्जिदों में बैठ गए हैं. तमाम दुनियावी व घरेलू कामकाज निपटा कर मस्जिद में बैठते हैं. 20वें रोजा शुक्रवार को मगरिब की नमाज से पहले इत्तेक़ाफ में बैठने वाले लोग मस्जिद में दाखिल हो गए. यह पूरे दस दिन तक मस्जिद में बिताकर ईद का चांद देखने के बाद ही बाहर निकल सकते हैं. यही कारण है कि लोग घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद ही इत्तेकाफ़ में बैठे हैं. माह-ए-रमजान के आखिरी अशरे में लोग इत्तेकाफ की नीयत कर मस्जिद में दाखिल हो गए. ईद का चांद नजर आने के बाद बाहर आएंगे. इस दौरान उनका खाना पीना, सोना, जागना मस्जिद में ही होगा. मौलाना अहमद अली खान रजवी बताते हैं कि इत्तेक़ाफ में बैठने वाला पूरे दस दिन दुनियावी झंझटों से दूर हो जाता है. तमाम बुराईयों, गलतियों, गुनाहों से बच जाता है.
हज़ार महीनों से अफजल है शब-ए-कद्र
मौलाना अहमद अली खान रजवी ने बताया कि रमजान में पांच रातें ऐसी आती हैं, जिसमें इबादत के साथ खूब दुआ करनी चाहिए. इनमें 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रात का विशेष महत्व है. इन रातों में मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों और महिलाएं-बच्चे घरों में जागकर इबादत करते हैं. इन्हीं में से एक रात शब-ए-कद्र होती है, जिसे हजरत मोहम्मद (स) ने हज़ार महीनों से अफजल रात बताया है.
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