नई दिल्ली (NEW DELHI) : जैसे-जैसे भारत के शहरी इलाकों में ई-वेस्ट संकट गहराता जा रहा है, वैसे-वैसे दिल्ली-एनसीआर एक अनोखे सामुदायिक मॉडल का गवाह बन रहा है. ग्रामीण विकास ट्रस्ट (जीवीटी) और सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एसएमबीसी) की साझेदारी से चल रहे ई-वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट के तीसरे चरण में स्कूल और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस (आरडब्ल्यूए) जिम्मेदार ई-वेस्ट निस्तारण को बढ़ावा देने में सक्रिय और प्रभावशाली साझेदार बनकर उभर रहे हैं.

2022 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य तेजी से बढ़ रहे ई-वेस्ट के संकट से निपटना है, खासकर अनौपचारिक और पिछड़े शहरी बस्तियों में जहां निस्तारण के तरीके असुरक्षित हैं और जागरूकता का अभाव है. जीवीटी द्वारा लागू और एसएमबीसी के वित्तीय व रणनीतिक सहयोग से संचालित यह पहल ई-वेस्ट संग्रह, प्रसंस्करण और जागरूकता के लिए एक टिकाऊ और सामुदायिक-आधारित मॉडल बनाने की दिशा में काम कर रही है. यह पहल राष्ट्रीय पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों (SDGs)—जिम्मेदार उपभोग (SDG 12), जलवायु कार्रवाई (SDG 13) और सम्मानजनक काम (SDG 8)—से भी जुड़ी है.

पहला चरण (अक्टूबर 2022 – मार्च 2023)

इस चरण में संगम विहार (दक्षिण दिल्ली) में आरआरआर (रिड्यूस, रीयूज, रीसायकल) केंद्रों को मजबूत किया गया, कचरा बीनने वालों को बुनियादी सुरक्षा और हैंडलिंग प्रशिक्षण दिया गया और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता सत्र आयोजित किए गए. इस चरण ने स्थानीयकृत ढांचे की जरूरत और व्यवहार में सकारात्मक बदलाव की शुरुआती झलक दिखाई.

दूसरा चरण (अप्रैल 2023 – मार्च 2024)

इसमें प्रोजेक्ट का दायरा और प्रभाव बढ़ाया गया. एक जीपीएस-सक्षम ई-वेस्ट कलेक्शन वैन की शुरुआत हुई, जो मोहल्लों और घर-घर जाकर ई-वेस्ट इकट्ठा करती रही. इसके साथ ही जागरूकता अभियानों ने नागरिकों की भागीदारी को काफी बढ़ाया. इस चरण तक लगभग 395 किलो इलेक्ट्रॉनिक कचरा एकत्रित हुआ, जिसमें से करीब 370 किलो सुरक्षित रूप से रीसायकल किया गया. 7000 समुदाय के लोग और लगभग 3000 छात्र-छात्राएं इस मुहिम से जुड़े. यह स्पष्ट हुआ कि रणनीतिक जागरूकता, पहुंच और जवाबदेही ठोस परिणाम दे सकती है.

तीसरा चरण (वर्तमान)

अब यह प्रोजेक्ट दिल्ली-एनसीआर के 18 इलाकों—जैसे मालवीय नगर, नेहरू प्लेस, महरौली, ओखला, गोविंदपुरी, साउथ एक्सटेंशन, वसंत कुंज और छतरपुर—में फैल रहा है. इस चरण की खास रणनीति स्कूलों और आरडब्ल्यूए को कम्युनिटी एंकर बनाना है. प्रोजेक्ट टीम नगर निगम और विभिन्न सरकारी विभागों से करीबी तालमेल में काम कर रही है.

स्कूल अब न सिर्फ जागरूकता केंद्र बने हैं बल्कि संग्रह स्थल भी. इंटरएक्टिव वर्कशॉप, क्विज़, शपथ अभियान और छात्रों द्वारा चलाए जा रहे प्रयासों से बच्चों में ई-वेस्ट के खतरनाक प्रभावों को समझने और सुरक्षित निस्तारण की आदत डालने पर जोर है. कई स्कूलों ने "ई-वेस्ट कॉर्नर" बनाए हैं, जहां बच्चे अपने घरों से पुराने गैजेट्स—चार्जर, बैटरी, कैलकुलेटर, हेडफोन—लाकर सुरक्षित रीसाइक्लिंग के लिए जमा कर रहे हैं.

“हमारे छात्रों को यह जानकर झटका लगा कि फेंका गया इलेक्ट्रॉनिक कचरा पानी और हवा को वर्षों तक जहरीला बना सकता है. अब वे घर से कचरा लाकर जमा करने के साथ परिवार को भी शिक्षित कर रहे हैं.” — सरवोदय को-एड स्कूल, हरिनगर (आश्रम, दिल्ली) की एक अध्यापिका

उधर, ग्रीन पार्क, पंचशील और लाडो सराय जैसी कॉलोनियों की आरडब्ल्यूए ने भी जागरूकता अभियानों, व्हाट्सएप ग्रुप संदेशों और रविवार को आयोजित संग्रह शिविरों के जरिए ई-वेस्ट को लेकर लोगों की सोच बदली है. जीवीटी के सहयोग से ये संगठन मोहल्लों में ब्रांडेड कियोस्क और ड्रॉप-ऑफ बिन लगा रहे हैं ताकि लोग पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सुरक्षित ढंग से फेंक सकें.

इस मुहिम को और मज़बूत करने के लिए जीपीएस, एलईडी स्क्रीन और ऑडियो संदेशों से लैस ई-वेस्ट कलेक्शन वैन भी तय रूट पर चलाई जा रही हैं. नागरिक मोबाइल ऐप से पिकअप शेड्यूल कर सकते हैं, अपना योगदान ट्रैक कर सकते हैं और जिम्मेदार व्यवहार के लिए “ग्रीन प्वॉइंट्स” भी कमा सकते हैं. एसएमबीसी, जो इस परियोजना का सीएसआर भागीदार है, इसे नीचे से ऊपर तक जलवायु प्रबंधन का एक आदर्श उदाहरण मानता है.

ग्रामीण विकास ट्रस्ट के प्रवक्ता ने कहा है कि स्कूल और आरडब्ल्यूए को जोड़कर हम सिर्फ संग्रह केंद्र नहीं बना रहे हैं, बल्कि जिम्मेदार पर्यावरणीय संस्कृति का निर्माण कर रहे हैं. आने वाले महीनों में स्कूल क्विज़ प्रतियोगिताएं, ई-वेस्ट से अपसाइक्लिंग ट्रेनिंग और सामुदायिक सम्मान कार्यक्रम शुरू होंगे. अग्रणी स्कूलों और आरडब्ल्यूए को डिजिटल स्टोरीटेलिंग अभियानों में भी शामिल किया जाएगा ताकि और लोग प्रेरित हों.

इस तरह, स्थानीय संस्थाओं पर भरोसा करके और छात्रों व निवासियों को पर्यावरण प्रहरी बनाकर, जीवीटी–एसएमबीसी ई-वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट का तीसरा चरण यह साबित कर रहा है कि हर बदलाव हमेशा ऊपर से नहीं आता. कभी-कभी यह कक्षा की एक शपथ या मोहल्ले के एक साझा निर्णय से शुरू होता है—यह तय करने से कि हमारी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं लैंडफिल में नहीं, बल्कि सतत चक्र में जाएंगी.