दुमका (DUMKA): विजयादशमी के अवसर पर अस्त्र-शस्त्र की पूजन-परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है. वर्तमान समय में भी जगह जगह इस परंपरा का निर्वहन करते देखा जाता है. कहीं तलवार तो कहीं बंदूक की पूजा होती है. इस सबके बीच दुमका में अनोखी शस्त्र पूजन देखने को मिला.
धातु के बदले पत्थर के औजारों की हुई पूजा
शहर के नयापाड़ा निवासी पंडित अनूप कुमार बाजपेयी ने पाषाण कालीन अस्त्र शस्त्र की पूजा की. लेखक सह पुरातात्त्विक खोजकर्ता पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने जो अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की वह अपने-आप में अनूठी है. उन्होंने फूल-बेलपत्र, चन्दन आदि सामग्रियों से जिन औजारों की विधिवत पूजा की वे धातु के नहीं, बल्कि पत्थरों के हैं. उनका कहना है कि भारी संख्या में इन औजारों को संताल परगना के जंगलों, पहाड़ों एवं नदी किनारों से खोज-खोजकर इकट्ठा किया गया है. औजारों में विभिन्न प्रकार की खुरचनी, फलक (ब्लेड), टंगली (छोटा टांगा), छूरा, हथौड़ी, भाला एवं तीर के अग्रभाग आदि शामिल हैं.
इन औजारों में हमारे पूर्वजों के संघर्ष एवं उत्कर्ष की गाथाएँ लिखी हैं : पंडित अनूप कुमार बाजपेयी
उन्होंने कहा कि लाखों वर्ष पूर्व के इन औजारों में हमारे पूर्वजों के संघर्ष एवं उत्कर्ष की गाथाएँ लिखी हैं. वे किसने उद्यमी थे, उन्होंने किस तरह अनुसन्धान किए, किस तरह के औजारों को बनाया, ये सब हमारे लिए महत्त्वपूर्ण, रोचक एवं शोध का विषय है. इन्हीं औजारों से उन्होंने अपना भविष्य गढ़ लिया. हमलोग आज जिस व्यवस्थित जीवन को जीते हैं, उसमें इन प्रस्तर औजारों का आधारभूत महत्त्व है. धातुयुग तो बहुत बाद में आया. इन ढेले-पत्थरों से आरम्भ होकर ही हमारी सभ्यता एवं विकास की यात्रा वर्तमान तक पहुँची है. इन्हीं औजारों से पाषाण-युगीन मानवों ने अपनी विजय गाथा लिखी, इसलिए विजयादशमी के पुनित अवसर पर ये हमारे लिये विशेषरूप से वन्दनीय हैं.

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