पाकुड़ (PAKUR):  झारखंड के पाकुड़ ज़िले के हिरणपुर प्रखंड अंतर्गत भंडारो गांव की एक गरीब आदिवासी बेटी पकू टुडू. उम्र कम, लेकिन जिम्मेदारियाँ बड़ी थीं. रोज़ी-रोटी की तलाश में उसने गांव के पास स्थित भण्डारो में एक पत्थर क्रेसर प्लांट में मजदूरी शुरू की.

वो धूल में लिपटी ज़िंदगी को भी उम्मीद की तरह देखती थी – मानो अब कुछ सुधरेगा, अब पलायन नहीं होगा,लेकिन 2018 की एक दोपहर, वो मशीन,जिससे पकू टुडू धूल साफ़ कर रही थी, उसी ने उसका बायां हाथ निगल लिया. एक झटका... एक चीख... और सब ख़त्म. मशीन चलती रही, लोग भागे, लेकिन पकू वहीं गिर पड़ी – अपने ही खून में लथपथ, तड़पती, सिसकती.

इलाज हुआ... लेकिन उसके बाद कुछ भी नहीं

ना मुआवज़ा, ना सहारा, ना नौकरी, ना न्याय सिर्फ एक टूट चुकी लड़की, जो अपने अधूरे जिस्म के साथ हर रोज़ अपनी ही बर्बादी को जीती है. जब THE NEWS POST के संवाददाता नंद किशोर मंडल उसके घर पहुँचे, तो पकू ने डबडबाई आंखों से सिर्फ इतना कहा मेरा हाथ नहीं है, अब मैं क्या कर सकती हूं. मैं जी नहीं रही... बस ज़िंदा हूं. उसकी आवाज़ में हिम्मत नहीं, दर्द था. उसके चेहरे पर शिकवा नहीं, लाचारी थी. उसके भविष्य में रोशनी नहीं, सिर्फ एक गहरा सन्नाटा था. कंपनी ने इलाज करवा कर पल्ला झाड़ लिया. सरकार ने कोई मदद नहीं दी. प्रशासन ने कोई सहारा नहीं दिया और समाज... हमेशा की तरह चुप. पकू का सिर्फ एक हाथ नहीं कटा, उसका आत्मसम्मान, उसकी मेहनत, उसकी पहचान – सब छीन लिया गया. आज भी वो गांव के कोने में बैठी है.
कभी अपनी कटी हुई बाजू को देखती है,
कभी खुद से पूछती है –क्या मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैं गरीब थी?"

ये खबर सिर्फ पकू की नहीं, ये हर उस मज़दूर की कहानी है जो रोज़ मशीनों से लहूलुहान होता है, और सिस्टम की चुप्पी में हमेशा के लिए खो जाता है,क्या पकू को उसका हक़ मिलेगा ? या ये दर्द भी किसी अख़बार की एक पुरानी कटिंग बनकर रह जाएगा?

रिपोर्ट:नंद किशोर मंडल/पाकुड़