Ranchi-पांचवें चरण के साथ ही पूरे देश में छठे चरण और झारखंड के तीसरे चरण की रणभेरी तेज हो चुकी है, अब सारे सियासी दलों की निगाहें गिरिडीह, धनबाद, रांची और जमशेदपुर के संग्राम पर टिकी है. शाह मात का खेल शुरु हो चुका है, अंतिम जोर आजमाइश की तैयारी है. इसी अंतिम जोर आजमाइश में कल नामकुम में प्रियंका गांधी की रैली है. कांग्रेसी रणनीतिकारों का मानना है कि प्रियंका गांधी की इस रैली के बाद राजधानी रांची का मिजाज बदला नजर आयेगा, कांग्रेसी प्रत्याशी यशस्विनी सहाय के लिए यह रैली मिल का पत्थर साबित होगा.

रोड शो के बदले अब प्रियंका की रैली

यहां याद रहे कि इसके पहले तक राजधानी रांची में प्रियंका गांधी के रोड शो की खबर उड़ रही थी. दावा किया जा रहा था कि पीएम मोदी के रोड शो के बाद प्रियंका गांधी का रोड शो कांग्रेस के लिए एक शक्ति प्रर्दशन होगा. लेकिन इस बीच राजधानी रांची में केन्द्रीय मंत्री अमित शाह का रोड शो हुआ, लेकिन अमित शाह के रोड शो को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. पीएम मोदी के रोड शो जैसा उत्साह नहीं दिखा. और अब कांग्रेस की ओर से भी रोड शो के बजाय रैली का फैसला किया गया. कांग्रेसी रणनीतिकारों का दावा है कि रोड शो के बजाय रैली अधिक कारगर तरीका है. इसमें जनता से जुड़े मुद्दे को उठाने का अवसर होगा, जनमानस तक पहुंचाने का विकल्प होगा. साथ ही शक्ति प्रर्दशन का अवसर भी होगा.

रैली और रोड शो की अपनी प्रासंगिकता और अपना असर

वहीं दूसरी ओर सियासी जानकारों का दावा है कि रैली और रोड शो का दोनों की अपनी प्रासंगिकता और अपना असर है. दोनों एक दूसरे का काट नहीं हो सकता. पीएम मोदी के रोड शो का ही असर ही राजधानी रांची में भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर एक उत्साह नजर आ रहा है, इस रोड शो का असर सिर्फ रांची में नहीं हुआ, बल्कि चतरा हजारीबाग में भी इसका व्यापक असर देखने को मिला. रैली में भीड़ जुटाने का कसरत करना पड़ता है, बसों और दूसरे साधनों से भीड़ जुटानी पड़ती है, जबकि रोड शो की भीड़ स्वाभाविक होती है, लोग स्वेच्छा से सड़क पर निकल कर अपने नेता का खैर मकदम करते हैं. 

रोड से पीछे क्यों हटी कांग्रेस?

और यहीं से यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर कांग्रेसी रणनीतिकारों ने  प्रियंका गांधी के रोड से पीछे हटने का फैसला क्यों किया? क्या अमित शाह के रोड शो से कांग्रेसी रणनीतिकारों ने कोई सबक सीखा? क्या कांग्रेसी रणनीतिकारों इस बात का भी भय था कि यदि राजधानी की रांची की सड़कों पर जन सैलाब नहीं उतरा, तो फजीहत का सामना करना पड़ेगा? चुनावी संग्राम से पहले ही सांगठनिक ताकत की सार्वजनिक नुमाइश हो जायेगी, तो क्या कांग्रेसी रणनीतिकार भी यह मान रहे हैं कि राजधानी रांची में उसकी पकड़ कमजोर है? और भाजपा के इस गढ़ में कांग्रेस को वह रिस्पौंस नहीं मिलेगा? कारण चाहे जो हो, लेकिन कई सियासी जानकार इसे एक रणनीतिक भूल मान रहे हैं. उनका मानना है कि रांची कांग्रेस की कमजोर कड़ियों में एक है, यहां उसे अधिक मेहनत की जरुरत थी, प्रियंका गांधी का  रोड शो इस कमजोर कड़ी को कुछ हद तक दूर कर सकती थी. आम शहरियों के द्वारा प्रियंका गांधी को जो खैर मकदम होता, उससे शहर की नब्ज  समझ में आती, खासकर महिला मतदाताओं को सामने प्रियंका गांधी को एक झलक देखने का अवसर होता और यहीं से कांग्रेस के पक्ष में एक हवा बनती.   

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