धनबाद (DHANBAD) : चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे के जाने से कोयला मजदूरों की एक कड़क आवाज हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गई. बाबा के नाम से प्रसिद्ध ददई दुबे बिहार में भी राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे, तो झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार में भी मंत्री रहे. जानकारी के अनुसार 2000 में बिहार में राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री बने, तो 2013 में हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री रहे. वह ट्रेड यूनियन के सहारे पॉलिटिक्स में आये. विश्रामपुर से विधायक रहे, इंटक के कद्दावर नेता रहे. किसी के दबाव में नहीं आना, उनके स्वभाव में था.  इस  वजह से कई मौको  पर उन्हें नुकसान भी हुआ. लेकिन समझौतावादी राजनीति से हमेशा उन्होंने परहेज किया.  इंटक  की राजनीति में भी वह मजबूत नेता  के रूप में जाने जाते थे. बाद में इंटक में राजेंद्र प्रसाद सिंह का कद बढ़ा, तो दोनों के रिश्तों में खटास आ गया. हालांकि राजेंद्र बाबू भी अब इस दुनिया में नहीं है. 

बुधवार की रात दिल्ली के अस्पताल में हो गया निधन 
 
ददई दुबे का भी बुधवार की रात 8:15 बजे दिल्ली के अस्पताल में निधन हो गया. इन दोनों नेताओं को कोयलांचल के साथ-साथ कोयला मजदूर हमेशा याद रखेंगे. मजदूरों के  हक के लिए पीछे नहीं हटाना, ददई दुबे की आदत में शुमार था. इंटक  फिलहाल जेबीसीसीआई में नहीं है. इसकी वजह भी दोनों  के बीच का विवाद ही है. ददई दुबे और राजेंद्र सिंह के बीच चल रहे विवाद की वजह से ही इंटक को जेबीसीसीआई से बाहर होना पड़ा था. दोनों अपने-अपने सोच के नेता थे. हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने भी दोनों को एक करने की भरसक कोशिश की. लेकिन कामयाबी नहीं मिली. यह अलग बात है कि 2004 में वह धनबाद से सांसद चुने गए थे. कोयला मजदूरों में पकड़ की वजह से ही उन्हें धनबाद से कांग्रेस ने टिकट दिया था.  

धनबाद में अलग अंदाज से बिल्कुल अलग पहचान बनाई 

5 साल धनबाद के सांसद रहने के दौरान अपने-अलग अंदाज से उन्होंने खुद की पहचान बनाई और कोयलांचल के "बाबा" बन गए. भाजपा का गढ़ माने जाने वाले धनबाद लोकसभा सीट पर उन्होंने कांग्रेस का पताका लहराया. धनबाद में भाजपा के विजय रथ को रोक दिया था. उन्होंने चार बार के सांसद प्रोफेसर रीता वर्मा को पराजित कर दिया था. धनबाद लोकसभा सीट 1991, 1996, 1998 तथा 1999 में भाजपा के पास थी.  2004 में वह धनबाद लोकसभा से सांसद चुने गए. उसके बाद कोयला श्रमिकों की राजनीति में वह तेजी से उभरे. 2009 में ददई दुबे को हराकर पशुपतिनाथ सिंह धनबाद से पहली बार सांसद बने थे. 2009 लोकसभा चुनाव हारने के बाद वह विश्रामपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी.  

2014 लोकसभा चुनाव में ददई दुबे को पार्टी ने टिकट नहीं  दिया तो -

2014 लोकसभा चुनाव में ददई दुबे एक बार फिर कांग्रेस का धनबाद से टिकट के लिए कोशिश की. कांग्रेस ने उनकी जगह अजय दुबे को धनबाद से प्रत्याशी बना दिया. इससे नाराज होकर ददई दुबे तृणमूल  कांग्रेस में चले गए. तृणमूल कांग्रेस ने धनबाद से उन्हें अपना लोकसभा का प्रत्याशी बनाया. लेकिन वह चुनाव हार गए. खैर, कोयला मजदूरों की राजनीति हो अथवा इंटक की सक्रियता, अब कोयला क्षेत्र में मजदूर नेताओं की नई पौध पर जिम्मेदारी है. यह अलग बात है कि कोयला मजदूरों का संगठन अब धीरे-धीरे कमजोर हो गया है. अब  मजदूर संगठनों में वैसी कोई ताकत नहीं है, सिस्टम भी बदलता चला गया. एक समय था, जब इंटक नेताओं की दहाड़ से कोयला कंपनियों का हाड़ कांपती थी. लेकिन धीरे-धीरे इंटक में कमजोरी आती गई और संगठन कमजोर होता चला गया. ददई दुबे और राजेंद्र प्रसाद सिंह दोनों अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन कोयला मजदूर अब अपनी आवाज को एक हद तक कमजोर जरुर महसूस करेंगे. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो