टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : पहलगाम में 26 बेकसूर सैलानियों को आतंकियों द्वारा मारे जाने के बाद एकबार फिर जंग का खतरा भारत-पाकिस्तान के बीच मंडराने लगा है. तनाव इस कदर चरम पर पहुंच चुका है कि युद्ध की आहट सुनाई पड़ने लगी है. अगर दोनों देशों को बीच लड़ाई होती है, तो जंग का कोई पहला मौका भारत-पाकिस्तान के लिए नहीं होगा. बल्कि इससे पहले चार लड़ाईया पाकिस्तान के साथ हो चुकी है, जिसमे पाक बुरी तरह से शिकस्त खाया है.
अक्सर कश्मीर को लेकर ही पाकिस्तान के तेवर समय-समय पर दिखलाई पड़ते हैं. आज भी इसी को लेकर उसका झगड़ा कायम है. कश्मीर को लेकर ही तरह-तरह की आजमाइंशे औऱ कूटनीति पाक करता आया है. चार जंग भी लडी, लेकिन हासिल नहीं कर सका, बल्कि भद्द तो पिटी ही औऱ बर्बादी के कागार पर ही पहुंच गया. अब आतंकियों को समर्थन कर कश्मीर में अराजता फैलना चाहता है और इसे हालिस करने का ख्वाब देखता है. लेकिन, उसके मूंसबे औऱ इरादे भारत के मजबूत संकल्प के सामने धवस्त हो जाते हैं.
ऐसे में आईए जानते है कि भारत-पाकिस्तान के बीच कितनी बार जंग हुआ औऱ कितने दिनों तक चला
1947 का युद्ध
भारत और पाकिस्तान दोनों को अंग्रेजों से 1947 में आजाद हुए थे, लेकिन अंदर ही अंदर एक कड़वाहट तो थी ही. कुछ दिन बाद ही कश्मीर को लेकर दोनों देशो के बीच लड़ाई के बादल मंडराने लगे थे. स्वतंत्र होने के बाद 1947 में ही कश्मीर में दंगे फैल गये थे. विद्रोह का दायरा बढ़ने पर पाकिस्तान ने कश्मीर में कबायली सेनाओं को भेजा था, उसके बाद लड़ाई शुरु हुई थी. फिर यूएन के माध्यम से जंग को खत्म करवाया गया. भारत ने कश्मीर के दो तिहाई हिस्से पर नियंत्रण बनाए रखा, जबकि पाकिस्तान ने गिलगित, बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृति पर कब्जा किया. 1947 में शुरु हुई ये लड़ाई एक साल तक चली थी औऱ 1 जनवरी 1949 को खत्म हो गई.
1965 का युद्ध
1965 में लड़ा गया जंग भारत के लिए काफी ऐतिहासिक था क्योंकि भारतीय सेना लोहार तक कब्जा जमा ली थी और पाकिस्तान को करारी पराजय का सामना करना पड़ा था. अगर जंग नहीं रुकती तो तस्वीर कुछ अलग ही होती. आज लाहौर भारत के कब्जे में होता. 5 अगस्त 1965 को शुरु हुआ ये युद्ध 23 सितंबर को 1965 में युद्ध विराम के साथ समाप्त हो गया. दरअसल, लाहोर तक कब्जा जमाने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप किया औऱ ताशकंद समझोते के तहत भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा .
इस युद्ध में पाकिस्तान का सारा उतावलापन औऱ अंकड़ निकल गई थी. भारतीय फौज लाहोर तक पहुंचने के बाद पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया . इसके बाद युद्ध विराम की घोषणा की गई. भारत को पाकिस्तान की जमीन लौटानी पड़ी. अगर युद्धविराम नहीं होता औऱ ताशकंद समझोते की बात भारत नहीं मानी होती, तो आज लाहौर भारत के हिस्से में होता.
1971 का युद्ध
इस जंग को बांग्लादेश मुक्ति युदध भी बोला जाता है. 3 दिसबंर से 16 दिसंबर तक चले इस जंग में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. इसके बाद ही बांग्लादेश का गठन पाकिस्तान को तोड़कर किया गया था. 1971 का साल भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के लिए भी अहम था. बांग्लादेश अपने वजूद की लड़ाई लड़ी औऱ पाकिस्तान से अलग अलग राष्ट्र बनाने के लिए ताकत झोंक दी. जिसमे भारत ने उसका पूरा-पूरा साथ दिया. 1947 में देश जब आजाद हआ था तो बंगाल का पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में विभाजन हुआ था.
पश्चिम बंगाल भारत के पास ही रहा, जबकि जबकि पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान हो गया. जो पश्चिम पाकिस्तान के अधीन था. यहां एक बड़ी संख्या में बांग्ला बोलने वाले बंगालियों की रही. भाषाई आधार पर ही पूर्वी बंगाल ने पाकिस्तान के प्रभुत्व से निकलने की कोशिश और आजादी के लिए लड़ाई छेड़ दी. हालांकि, इसके लिए बांग्लादेश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी. आजादी के संघर्ष में पाकिस्तानी सेना बर्बरता की सारे हदे पार कर दी औऱ कत्लेआम करके रख दिया. तकरीबन दो लाख महिलाओं का रेप किया गया. बांग्लादेश के लिए 1971 के हालात बेहद खराब औऱ रोंगटे खड़े कर देने वाले थे. शेख मुजीबुर्ररहमान की अगुवाई में लड़ रहे बांग्लादेश को भारत ने साथ दिया. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बेदम कर दिया औऱ उसके छक्के छुड़ा दिए थे. 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
1999 का युद्ध
1999 में करगील की जंग हुई थी, पाकिस्तान ने धोखे से करगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी. भारतीय सेना ऑपरेशन विजय के जरिए इन चोटियो को दुबारा हासिल किया. इसके लिए जवानों ने शहादत भी दी औऱ अदभ्य साहस का परिचय दिया. इस युद्ध में भारतीय फौज के पराक्रम के सामने दुश्मनों के दांत खट्टे हो गये थे. यह जंग 3 मई से जुलाई 1999 तक चली, जो 84 दिन तक खींची. कारगिल वार की सबसे बड़ी चुनौती भारतीय सेनिकों के सामने ये थे कि दुश्मन पहाड़ी की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमकार बैठे हुआ था. जबकि भारतीय सेना नीचे थी. ऐसी हालत में दुश्मनों से निपटने के लिए भारतीय सेना के लिए बोफोर्स तोपें काफी मददगार साबित हुई. इसकी खासियत ये थी कि ऊंचाई वाले इलाके में भी टारगेट पर गोले दाग सकती थी. बोफोर्स का फायदा उठाने के साथ ही इंडियन एयरफोर्स ने ऑपरेशन विजय शुरु किया औऱ दुश्मनों को खदेड़ दिया. 26 जुलाई को भारत ने इस क्षेत्र में नियंत्रण पाने के साथ ही युद्द समाप्त हो गया. इस दिन को अब करगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
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