जमशेदपुर (JAMSHEDPUR) : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल का नेतृत्व हो तो हर बाधा को हौसले पस्त कर देते हैं. इसी हिम्मत के बल पर दर्जनभर महिलाओं ने एक महीने तक उन तमाम चोटियों पर विजयी पताकाएं फहराईं, जिनपर पहुंचना संकटों के दरिया को पार करना है. बात फिट@50+ महिला ट्रांस हिमालयन अभियान दल की है 30 दिनों की मुश्किल ट्रेकिंग के बाद, टीम आखिरकार भारतीय धरती पर लौट आ गई है. इस दौरान माउंट एवरेस्ट सहित, 8000 मीटर से ऊपर 14 पहाड़ों में से 8 पर्वतों वाले नेपाल में टीम ने पूरे एक महीने बिताए.
12 मार्च से शुरू हुआ कारवां
अब यह कारवां भारत के कई पहाड़ों पर चढ़ेगा, जिसमें लद्दाख की चोटियां भी शामिल रहेंगी. इनकी यात्रा 12 मार्च, 2022 को भारत-म्यांमार सीमा के पांग-साऊ दर्रे पर शुरू हुई थी. इसका समापन जुलाई में होगा. पद्म भूषण बछेंद्री पाल की अगुवाई में टीम में 50-68 वर्ष की आयु वर्ग की 12 महिलाएं शामिल हैं. टीम ने भारत के चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, ऊपरी पश्चिम बंगाल और सिक्किम में 650 किलोमीटर की दूरी तय की जबकि पश्चिमी, मध्य और पूर्वी नेपाल में 1500 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की है.
हर दिन 25 किलोमीटर की दूरी तय की
भारत-म्यांमार सीमा पर पटकाई पहाड़ियों में स्थित, 3,727 फीट की ऊंचाई पर स्थित पंगसाऊ दर्रा असम के मैदानों से होते हुए बर्मा में सबसे आसान मार्गों में से एक है. टीम ने सड़क पर उतरने से पहले ग्राम देवी के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया. वहीं 'मैं इसके लिए बहुत उम्रदराज हूं' की बाधा को तोड़ते हुए, टीम ने अभियान के शुरुआती चरण में हर दिन औसतन 25 किलोमीटर की दूरी तय की, धीरे-धीरे समय के साथ दूरी बढ़ती गई. यह अनुकूलन का चरण था जिसमें भाग लेने वाली महिलाओं ने सहायक कर्मचारियों के साथ अपने आप को पहाड़ी परिस्थितियों में ढाला.
मिला भारतीय सेना का साथ
इलाका उबड़-खाबड़ है, मौसम शांत है, हौसले बुलंद हैं और टीम सख्त है. इस अभियान के दौरान भारतीय सेना, राष्ट्र की रक्षा करते हुए, हर उपद्रवग्रस्त क्षेत्र में समूह के साथ थी. हाइलैंड्स से ट्रेकिंग करते हुए, सड़क के किनारे आराम करते हुए, टीम को असम में स्थानीय लोगों से बहुत गर्मजोशी मिली.'अतिथि देवो भवः' की संस्कृति का परिचय देते हुए, कुछ ने जलपान की पेशकश की, कुछ ने अभियान के बारे में अधिक जानना चाहा. मकई के खेतों में आराम करते हुए, हर स्थानीय प्रमुख स्थलों का दौरा करते हुए, असम के चाय बागानों में चाय पीते हुए, इन महिलाओं ने इस विशाल सांस्कृतिक विस्तार के साथ घुलने-मिलने का कोई मौका नहीं गंवाया.
4:00 बजे होती थी सुबह
किसी भी तरह के कठोर मौसम या किसी भी प्रतिकूलता ने टीम के उत्साह को कम नहीं किया. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस यात्रा में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से उच्चतम मानवीय धैर्य भी शामिल था. टीम के लिए दिन की शुरुआत सुबह करीब 4:00 बजे हो जाती. वे सुबह 4:30 बजे ट्रेकिंग शुरू कर देते थे, जबकि ठंडी ठंडी सुबह में सूरज अभी भी कहीं बहुत दूर नीचे होता था. उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों से गुजरते हुए, सेना के जवानों ने पूरे रास्ते ट्रेकर्स की सुरक्षा की.
उदाहरण बनीं महिलाएं
टीम ने बताया, ब्रह्मपुत्र नदी के पार बोगीबील पुल को पार करना, इसी प्रवास के दौरान में होली मनाना भी यादगार अनुभव रहा. हम कह सकते हैं कि हमारी टीम को असम के लोगों से जो गर्मजोशी मिली है, वह अविश्वसनीय है. वे दिन गए जब सेवानिवृत्ति के बाद अधिक आयु वर्ग के लोग आराम करते थे. यह रोमांच का युग है और ये महिलाएं इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. भारतीय सेना के मार्गदर्शन में ऊबड़-खाबड़ इलाकों में ट्रेकिंग करते हुए, ये बहादुर महिलाएं हर तरह के डर या संदेह पर विजय प्राप्त कर रही हैं. इन महिलाओं ने सुंदर शांत पहाड़ों को निहारने के लिए शहर के व्यस्त जीवन की बेड़ियों को तोड़कर आगे कदम बढ़ाया है.
लौटी टीम
पहाड़-दर्रों की गोद में पली-बढ़ी बछेंद्री पाल के लिए पहाड़ हमेशा गर्व का स्रोत रहे हैं और यह प्रयास उनके दिल के बहुत करीब है. दो लंबे वर्षों की सावधानीपूर्वक योजना के बाद, उन्होंने जीवन की एक यादगार इस यात्रा को शुरू किया. टीम ने अन्नपूर्णा सर्किट मार्ग से ट्रेकिंग कि और नेपाल के मुक्तिनाथ पहुंची. एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर जाने के लिए ऊंचे दर्रों को पार करते हुए, महिलाएं 17,769 फीट की ऊंचाई पर थोरंगला दर्रे पर पहुंचीं - जो अब तक का सबसे ऊंचा स्थान है. वे भारतीय उपमहाद्वीपों में और अधिक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य लेने के लिए तैयार हैं जैसे कि फरंगला दर्रा 18,300 फीट की ऊंचाई पर और लमखागा दर्रा 17,330 फीट पर.
ऐतिहासिक अभियान
ट्रेकिंग अब आम लोगों के लिए अपने द्वार खोल रहा है. इच्छुक महिलाएं अब वैकल्पिक मार्गों में शामिल हो सकती हैं और इस महान टीम के साथ ट्रेकिंग के आजीवन अवसर का आनंद ले सकती हैं. यह ऐतिहासिक अभियान जुलाई के अंतिम सप्ताह में कारगिल में अपने अंतिम गंतव्य पर पहुंचेगा.
रिपोर्ट: रंजीत ओझा, जमशेदपुर
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