TNP DESK:भारत की ये जगहें केवल डरावनी नहीं, बल्कि जिंदा रहस्य हैं .जो अपनी कहानियों को हवा, दीवारों और खामोशी के ज़रिये सुनाती हैं.अगर आप एडवेंचर और रहस्य के शौकीन हैं, तो ये डेस्टिनेशन आपकी ट्रैवल लिस्ट में जरूर होनी चाहिए.लेकिन एक बात आप याद रखना,हर जगह पर केवल कदम रखना ही काफी नहीं होता कुछ जगहें आपको खुद में समा लेती हैं.तो चलिए आज उस डरावनी जगह के बारे में जानते है .

भानगढ़ जहाँ वक़्त की साँसें रुक चुकी हैं (राजस्थान)

यह केवल एक किला नही है, यह एक शापित सदी की अंतिम चीख है, जो अब भी इन वीरान पत्थरों में गूँजती है.आपको बताए अरावली की दरारों में पनपा ये अभिशप्त नगर, सूरज की पहली किरण से लेकर अंतिम रोशनी तक अपने अंदर एक अजीब कसमसाहट समेटे हुए है. यहाँ हवा में एक ऐसी गंध है, जहां न धूप की, न बारिश की बल्कि सड़ चुके समय की, जिसने खुदकुशी कर ली थी.

दोपहर के सन्नाटे यहाँ रात से ज़्यादा भयानक होते हैं

मान्यता है कि एक तांत्रिक ने प्रेम में असफल होकर नगर को श्राप दिया था, और उसी दिन से भानगढ़ केवल ईंटों का ढाँचा नहीं रहा था .बल्कि ये एक ऐसा जीवित श्राप है जो हर कदम पर आपके होश उड़ता देता है.दोपहर के सन्नाटे यहाँ रात से ज़्यादा भयानक होते हैं, और अगर आप सूरज ढलने के बाद भीतर गया तो कभी वापस नहीं लौट पाएंगे.

आज भी सूर्यास्त के बाद नो एंट्री

भानगढ़ किले को आधिकारिक तौर पर 'भुतहा स्थल' घोषित कर दिया गया है. आपको बताए यहाँ सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले प्रवेश करना माना है. यह बाते बोर्ड पर स्पष्ट रूप से लिखी हुई है .स्थानीय लोगों का कहना है कि , रात में अजीबो-गरीब आवाज़ें सुनाई देती हैं, जैसे किसी के रोने या चीखने की आवाज आती है . वही कई लोगों ने तो दावा करते हुए बताया है कि उन्होंने यहाँ अजीब घटनाओं का अनुभव किया है ,जैसे हलचल की आवाज़ें, परछाइयाँ, या फिर तेज़ हवाओं में फुसफुसाहटें.

कैसे पहुंचे और क्या है खास

जयपुर से भानगढ़ किला 90 किमी दूर है, जहाँ आप टैक्सी या निजी वाहन से पहुँच सकते हैं. वही ASI (भारतीय पुरातत्व विभाग) ने स्पष्ट रूप से बोर्ड लगाया है कि सूर्यास्त के बाद प्रवेश करना माना है .यहाँ की खास बात यह है कि आपको एक ही जगह इतिहास, रहस्य और डर की ज़िंदा झलक मिलती है.यह एक ऐसा अनुभव है जो आप कभी भूल नहीं पाएँगे.

क्या यह सिर्फ एक मिथक है या सच्चाई

भानगढ़ को लेकर विज्ञान और तंत्र-मंत्र के बीच बीते कई वर्षों से संघर्ष जारी है. जहां एक ओर वैज्ञानिक इन कहानियों को मनोवैज्ञानिक प्रभाव मानते हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोग इन्हें ऐतिहासिक सच्चाई कहते हैं.