सरायकेला(SARAIKELA) : कला नगरी सरायकेला छऊ नृत्य कला में रोज नए आयाम को गढ़ता जा रहा है. यहीं की मिट्टी में जन्मी और संपोषित हुई इस कला ने देश ही नहीं आज विदेशों में भी अपनी खास पहचान बना रखी है. तभी तो विश्व के सांस्कृतिक धरोहरों में इस कला को शामिल किया गया. यह कला यहां के लोगों के रोम-रोम में बसी है. यही कारण है इस शहर के हर घर में आपको एक छऊ कलाकार जरूर मिल जाएंगे. अब तक सरायकेला के छऊ कला में छह गुरुओं को पद्मश्री मिल चुका है. वहीं वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू शशधर आचार्या को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा हुई थी. लेकिन यह पुरस्कार उन्हें कोरोना के कारण नहीं मिल पाया था. अब आज उन्हें यह पुरस्कार मिल गया है. इससे जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है. राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा यह पुरस्कार उन्हें दिया गया. पिछली पांच पीढ़ी से सरायकेला छऊ में समर्पित शशधर के परिवार में पहली बार किसी को पद्मश्री मिलने से सभी काफी खुश हैं.
सरायकेला की धरती पर आए सात पद्मश्री सम्मान
सरायकेला राज परिवार से जन्मी छऊ कला किसी परिचय की मोहताज नहीं है. मुखौटा से चेहरा छुपाकर भाव प्रदर्शित करने की यह अद्भुत कला आज विश्व स्तर पर अपनी एक खास पहचान बना रही है. अब तक छह छऊ गुरुओं को इस कला में पद्मश्री मिल चुका है. सरायकेला राजघराने के कुंवर विजय प्रताप सिंहदेव को पहली बार छऊ कला में पद्मश्री मिला था, फिर उसके बाद केदारनाथ साहू, श्यामाचरण पति, मंगलाचरण पति, मकरध्वज दारोघा तथा पंडित गोपाल दुबे को यह पुरस्कार मिल चुका है. वर्ष 2020 के लिए छऊ कला में सातवां पद्मश्री के रूप में शशधर आचार्या को पुरस्कृत किया गया है. पुरस्कार मिलने के साथ ही सरायकेला में छऊ कला प्रेमियों के बीच खुशी की लहर देखी जा रही है.
पांच पीढ़ियों की विरासत को पहुंचाया इस मुकाम पर
पिछले पांच पीढ़ियों से सरायकेला छऊ को समर्पित परिवार के सदस्य के रूप में शशधर आचार्य अपने पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. पांच वर्ष की आयु से ही अपने पिता गुरु लिंगराज आचार्य के सानिध्य में इन्होंने इस कला का ककहरा सीखा. फिर अपनी मेहनत के बल पर साल दर साल छऊ कला में ये पारंगत होते गए. आज वे सरायकेला व दिल्ली में आचार्य छऊ नृत्य विचित्रा नामक संस्था चलाकर नई पीढ़ियों को छऊ नृत्य का ज्ञान देते है. ये दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तथा पुणे के फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया संस्थान में शिक्षक के रूप में अपना योगदान देते हैं. छऊ कला में बेहतर प्रदर्शन के कारण ही इन्हें ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं और आज इनकी उपलब्धियों में एक स्वर्णिम उपलब्धि और भी जुड़ गई है. शशधर आचार्य 1990 से 1994 तक राजकीय नृत्य कला केंद्र निदेशक भी रहे थे. हालांकि स्टडी लीव के कारण इन्होंने निदेशक का पद छोड़ दिया और वापस फिर कभी जॉइन नहीं किया. आज शशधर आचार्य अपनी इस उपलब्धि से काफी खुश हैं तथा अपने गुरु समान पिता तथा अन्य गुरु को यह सम्मान समर्पित कर रहे हैं.
पद्मश्री शशधर आचार्य का परिवार बेहद खुश
इस खुशी के मौके पर पद्मश्री शशधर आचार्य के परिवार वालों का कहना है कि आज उनके पिता की आत्मा को शांति मिलेगी. धर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक तपन पटनायक ने भी छऊ कला के उत्थान की दिशा में तथा कला के प्रति नए उत्साह के सृजन हेतु इस पुरस्कार को काफी अहम माना है. एक छोटे से शहर से केवल एक कला के लिए सात पद्मश्री मिलना वाकई में एक बड़ी उपलब्धि है. हर साल गुजरने के साथ न सिर्फ छऊ कला का उत्थान हो रहा है बल्कि इसकी उपलब्धियों में भी चार चांद लगता जा रहा है. ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि छऊ गुरुओं की बढ़ रही विरासत के बीच यह कला ना सिर्फ संरक्षित होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इस कला के प्रति प्रोत्साहित करने में अहम योगदान करेगा.
रिपोर्ट: विकास कुमार, सरायकेला
Recent Comments