रांची (RANCHI) :  चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है/ मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है…. आज दुनियां जिसका दिन मना रही है, वह हमारी-आपकी सबके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है. दुनिया में हमारा होना उससे ही है. जी हां, वह मां ही है जिसके होने पर ऊपर आसमां और नीचे जमीं के साथ होने का अहसास होता है. मां का साथ कैसा होता है, उसे मुनव्वर राना के शब्दों में कहें तो - अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा/  मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है. गर मां सशरीर साथ नहीं तो भी उनकी दुआएं साथ होती हैं. यहां भी शायर के शब्दों को ही उधार लें तो जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है/  माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है.

साल का यह दिन मां के नाम

हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस मनाया जाता है. करीब 111 साल से यह परंपरा चल रही है. इस दिन की शुरुआत ग्राफटन वेस्ट verginiya में एना जार्विस ने सभी माताओं को उनके मातृत्व को सम्मान देने के लिए की थी. यह दिन हमारी मां के बिना शर्त के प्यार और उनके बच्चों के लिए किए गए प्रत्येक बलिदान को समर्पित होता है.  लोग इस दिन अपनी मां, और  मां जैसी शख्सियतों का भी सम्मान देते हैं.

बच्चों को रहता है खास इंतेज़ार

मदर्स डे के दिन हम अपनी माताओं को धन्यवाद देते हैं, और उनके प्रति अपने प्यार और भावनाओं का इज़हार करते हैं. हालांकि अलग-अलग जगहों पर यह दिन अलग-अलग तरीकों  से  मनाया जाता है. लेकिन अगर हम बात करें भारत की तो यहां रिश्तों को सबसे बड़ा दर्जा दिया जाता है. ऐसे में बच्चे अपनी मां को इस दिन उनके अनमोल प्यार, स्नेह, और त्याग के लिए उन्हें शुक्रिया न कहे ऐसा होना मुम्किन नहीं हैं. बच्चे भी इस दिन के इंतेज़ार में रहते हैं. और समय से पहले से ही कार्ड बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं. वो अपने कार्ड्स में अपनी मां की सुंदरता, मां से मिले प्यार और न जाने अपने मन की कितनी बातें लिखते हैं. क्लास 6 की छात्रा श्रीजा वत्स कहती है कि मैं पिछले दस दिनों से मां की अनुपस्थिति में कार्ड बना रही थी. मां को बेहद प्यार करती हूं और इसे जाहिर करने का यही तरीका भाया.

 हर दिन हो सराहना

 बेशक एक मां का समपर्ण किसी खास दिन का मोहताज नहीं. पर इस खास दिन को भी यूं ही कैसे गुजर जाने दे जब दुनिया मां को याद कर रही हो. ऐसे में बच्चे अपनी  माओं को कुछ स्पेशल देने की कोशिश करते हैं. और एक मां के लिए उसके बच्चे के हाथो से बना हैंडमेड कार्ड से स्पेशल और क्या हो सकता हैं. फिर चाहे वो एक सेलिब्रिटी मदर हो या एक साधारण मां. अपने बच्चों के हाथों से बने कार्ड और उसमे लिखे बातों को पढ़ कर हर  मां के आंखों में ख़ुशी के आंसू  छलक उठते हैं.  मां संचिता मुखोपाध्याय कहती हैं कि मेरी 11 साल की नन्हीं परी ने जब मेरे लिए खुद कार्ड बना कर मुझे दिया, तो उसके शब्दों और रंगों को महसूस कर आंखें नम हो गई.

बहरहाल, उम्र का कोई भी दौर हो, मां की जगह हमेशा अलग होती है. शिद्दत और अहसास में कोई फर्क नहीं पड़ता. उम्र की सुबह तो मां के ही भरोसे होती है. दोपहरी तक वहीं तैनात रहती है. हमारी जरुरतों के लिए. उम्र की शाम में मां की यादों का भरोसा रहता है. उम्र की सांझ की ऐसी ही भावना निदा फाजली के शब्दों में बयां करें तो अंत में मां के नाम ही ये पंक्तियां भी समर्पित - बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ/ याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ.