टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : एक तरफ सदर अस्पताल मरीजों को सुविधा देने में देशभर में अव्वल रहा तो वहीं राज्य का सबसे बड़े अस्पताल अपना बदहाली पर आंसू बहाने का काम कर रहा है. स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि मरीज वहां जाने से कतराते है. आलम यह है कि रिम्स की बदहाली पर झारखंड हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. रिम्स में डॉक्टरों की कमी, खराब व्यवस्था, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप ने इसे बदहाली की कगार पर ला खड़ा किया है.   

अस्पताल की बदहाल व्यवस्था से मरीज परेशान

रिम्स को हर साल सरकार से करोड़ों रुपये का बजट मिलता है. नए भवन बन रहे हैं, मशीनें खरीदी जा रही हैं, कागज़ों पर योजनाएं तो दिखती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत की बात करें तो स्थिति कुछ और ही है. आईसीयू में बेड की संख्या सीमित है, कई वार्डों में सफ़ाई का अभाव है और दवाओं की कालाबाज़ारी की शिकायतें आम हैं. रिम्स के पुराने भवन के बेसमेंट में बारिश का पानी जमा हो जाता है. पानी की निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण जमा पानी से बदबू आने लगती है. इधर, पेइंग वार्ड के मुख्य द्वार पर भी सीवरेज का गंदा पानी जमा हो जाता है. पेइंग वार्ड के मरीज लंबे समय से इससे उठने वाली बदबू से परेशान हैं.

मशीनें खराब, मरीज निराश

रिम्स में हर रोज़ हज़ारों मरीज़ आते हैं. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्र तक के लोग इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है. कई विभागों में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं, मशीनें या तो खराब हैं या महीनों से मरम्मत के इंतज़ार में हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब रिम्स को सुपर स्पेशियलिटी संस्थान बनाने के वादे किए गए थे, तो फिर इसकी यह हालत क्यों है? क्या यह मैनेजेमेंट की विफलता है या इसे जानबूझकर बर्बाद किया जा रहा है? अगर देखा जाए तो अस्पताल की प्रबंधन समिति में राजनीतिक हस्तक्षेप हावी है. निदेशक और विभागाध्यक्षों की नियुक्ति में सिफ़ारिशें और गुटबाजी प्रमुख भूमिका निभा रही है.

आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने रिम्स अस्पताल का एक वीडियो पोस्ट कर सरकार और रिम्स प्रशासन पर सवाल उठाए थे. बाबूलाल ने अपने पोस्ट में लिखा था कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स की जर्जर बिल्डिंग हादसे को न्योता दे रही है. दीवारें और टूटता प्लास्टर, दरारें और जलजमाव न सिर्फ मरीजों के लिए बल्कि डॉक्टरों और अन्य स्टाफ के लिए भी खतरनाक है. लेकिन उस वक्त स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने बाबूलाल द्वारा उठाए गए इस सवाल को विकास विरोधी बयान करार दिया था. अब जब हाईकोर्ट ने सख्ती से इस पर जवाब मांगा है तो देखना होगा कि कोर्ट के सामने क्या दलील दी जाती है.