TNP DESK- देशभर में जहां नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, वहीं पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा का उत्सव अपने चरम पर पहुंचकर विजयादशमी के अवसर पर मां दुर्गा की विदाई की रस्म के साथ संपन्न हुआ. इस मौके पर सिंदूर खेला की पारंपरिक रस्म ने पूजा पंडालों का माहौल उत्साह और भक्ति से भर दिया.

बंगाल की परंपरा: सिंदूर खेला

दशकों पुरानी इस परंपरा में शादीशुदा महिलाएं लाल और सफेद पारंपरिक साड़ी पहनकर मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने एकत्रित होती हैं. सबसे पहले वे मां दुर्गा की मांग में सिंदूर भरती हैं, उन्हें मिष्ठान अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर वैवाहिक सुख और समृद्धि की कामना करती हैं. इस दौरान पंडालों में ढाक की धुन और धुनुची नृत्य का आयोजन भी हुआ, जिसने माहौल को और भव्य बना दिया.

सिंदूर को सुहाग और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि मां दुर्गा को सुहागिन का रूप मानकर विदाई के समय सिंदूर चढ़ाने से महिलाओं के सौभाग्य की रक्षा होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, दुर्गा मां को हर साल धरती पर मायके आने वाली बेटी माना जाता है. नौ दिनों तक उनका स्वागत करने के बाद दशमी के दिन उन्हें विदाई दी जाती है और माना जाता है कि वे अपने ससुराल कैलाश पर्वत लौट जाती हैं. इस मौके पर महिलाएं मां से आशीर्वाद लेकर उन्हें अगले वर्ष पुनः आने का निमंत्रण देती हैं और "आसछे बोछोर आबार होबे" (अगले साल फिर होगी) का नारा लगाती हैं.

आसनसोल के विभिन्न पूजा पंडालों में सुबह से ही विवाहित महिलाओं ने मां की विदाई की रस्म निभाई. यही दृश्य बांकुड़ा, बिरभूम, पुरुलिया, मेदनीपुर, हावड़ा, हुगली, बर्दवान, कोलकाता, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर, मालदा सहित पश्चिम बंगाल के अन्य जिलों में भी देखने को मिला.

धार्मिक महत्व से परे, सिंदूर खेला को बंगाल की संस्कृति में महिलाओं के आपसी प्रेम, एकजुटता और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी माना जाता है. यही कारण है कि हर साल विजयादशमी पर यह रस्म न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सामाजिक बंधन को भी मजबूत करती है.