चाईबासा (CHAIBASA): आखिर 60 वर्षीय चुंबरू बिरहोर ने दम तोड़ दिया. उसकी मौत बीमारी से नहीं हुई, बल्कि व्यवस्था की अनीति का वह शिकार हुआ. करीब 2 महीने से वह गहरे घाव से जूझ रहा था, बेहतर इलाज के अभाव में पैर सड़ गया था. कुछ दिनों पहले वह रोजगार की तलाश में टाटीबा से जायरपी जगन्नाथपुर पहुंचा था. पहुंचने के बाद उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई. आंदोलनकारी कृष्ण चंद्र सिंकू के सहयोग से उसे सदर अस्पताल के जिरियाट्रिक वार्ड में एडमिट कराया गया, जहां उसे ब्लड की जरूरत थी. मगर चुंबरु को कोई बल्ड देने वाला नहीं मिला. इस संबंध में The Newst Post ने पाठकों को कल ही खबर बताई थी.
दो छोटे बच्चे के लिए अब मां ही सहारा
स्थानीय समाजसेवियों, स्वास्थ्य और जिला प्रशासन के सहयोग से श्मशान काली मंदिर स्थित शवदाह गृह में उनके 5 वर्षीय बड़े पुत्र अमर बिरहोर व 3 वर्षीय छोटे पुत्र कोंदा बिरहोर ने मुखाग्नि देकर चुंबरू बिरहोर का अंतिम संस्कार किया. अब चुंबरू बिरहोर के परिवार में उसकी 50 वर्षीया पत्नी पानी बिरहोर, 5 वर्षीय पुत्र अमर बिरहोर और 3 वर्षीय पुत्र कोंदा बिरहोर रह गए हैं. पत्नी ने बताया कि परिवार को पहले सरकारी चावल मिलता था, लेकिन पिछले साल से उन्हें चावल भी नहीं मिल रहा है. इस कारण से हमें पेट पालने के लिए इतनी दूर काम करने आना पड़ा.
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मरने के बाद उमड़ा सरकारी दुख
जिला कल्याण पदाधिकारी जोसेफ टोप्पो, समाजसेवी लालू कुजुर, रियांस समाद, सनातन पिंगुवा ने चुंबरूबिरहोर की विधवा और बच्चों को कपड़े, खाने पीने के सामान, नकद रकम और चावल देकर सहयोग किया. सदर अस्पताल के बंटी कुमार सिन्हा ने अंतिम संस्कार के लिए सरकारी खर्चे पर लकड़ी आदि की व्यवस्था की. सदर अस्पताल के एम्बुलेंस चालक गुरुचरण बोदरा, शवदहन एम्बुलेंस प्रबंध के चालक पत्रकार भागीरथी महतो, थोमस सुन्डी आदि का भी सहयोग रहा.
टाटीबा में होगी पुनर्वास की व्यवस्था
मंगलवार को सदर अस्पताल से सरकारी खर्चे पर पीड़ित परिवार को कुछ समाजसेवी हाटगम्हरिया ले जाएंगे. हाटगम्हरिया प्रखंड विकास पदाधिकारी को उन्हें सौंपा जाएगा. जहां से वो पीड़ित परिवार को गुदड़ी के प्रखंड विकास पदाधिकारी से संपर्क कर टाटीबा में इनके पुनर्वास की व्यवस्था करवाएंगे.
रिपोर्ट: संतोष वर्मा, चाईबासा

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