टीएनपी डेस्क(TNP DESK): एकादशी का व्रत बहुत ही धार्मिक महत्व रखता है. एकादशी भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है. भगवान विष्णु को एकादशी व्रत बहुत ही प्रिय है. वहीं आपको बता दे कि इस बार 10 सितंबर रविवार के दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आ रही है. जिसे जया या अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को करने से किसी भी व्यक्ति को संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती है, और अंत में वो विष्णु लोक में जाता है. इस व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ के बराबर ही माना जाता है, तो आज हम बात करेंगे इस व्रत के शुभ मुहूर्त पूजा विधि और कथा के बारे में.
10 सितंबर को किया जायेगा अजा एकादशी का व्रत
आपको बता दे की साल में कुल 24 एकादशी आती है, जिसमें 12 शुक्ल पक्ष की एकादशी और 12 कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है. वहीं साल 2023 में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि 9 सितंबर शनिवार के शाम 7 बजकर 18 मीनट से शुरू होकर 10 सितंबर रविवार की रात 9 बजकर 28 मीनट तक रहेगी, क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 10 सितंबर को होगा, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा.
इस विधि से करें पूजा, राजा हरिश्चंद्र के जैसे चमकेगा भाग्य
अब हम आपको बता दें कि अजय एकादशी के पूजा करने के नियम और विधि क्या है, तो हम आपको बता दें कि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए और पूजा व्रत का संकल्प लेना चाहिए, व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए और एक समय फलाहार रहना चाहिए.वहीं घर में किसी भी साफ स्थान पर पूजा की तैयारी की जानी चाहिए, जहां भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो लगाकर शुद्ध घी का दिया जलाना चाहिए. पूजा की शुरुआत में सबसे पहले पंचामृत से भगवान बिष्णु को स्नान कराना चाहिए, इसके बाद शुद्ध जल से भगवान को स्नान कराकर फलों का हार बनाकर, गंध, पुष्प धूप, दीप आदि चीजें चढ़ाई जानी चाहिए.और पीले वस्त्र और भोग भगवान को अर्पित कर मन ही मन में ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते रहना चाहिए. अंत में आरती करके और भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करना चाहिए. इसके बाद व्रत की कथा सुननी चाहिए. वहीं अगले दिन 11 सितंबर यानि सोमवार को व्रत का पारण करना है. अजा एकादशी के व्रत से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
ये इसके पीछे की धार्मिक कथा
वहीं अजा एकादशी के पीछे एक धार्मिक कथा भी जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार सूर्यवंशी के राजा हरिश्चंद्र ने वचनबद्ध होने की वजह से अपना सारा राज्य और धन त्याग दिया. सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने अपनी स्त्री, पुत्र और स्वयं को एक चांडाल के हाथों बेच दिया, और उसके साथ ही रहने लगे. एक दिन ऋषि गौतम आयें और राजा हरिश्चंद्र को इस व्रत के बारे में बताया, जब राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी का व्रत विधि विधान से किया , तो राजा हरिश्चंद्र को अपना राजपाट वापस मिल गया, वहीं उनके मरा हुआ बेटा भी जीवित हो गया, अंत में वो अपने परिवार के साथ स्वर्ग लोक को गए. इसके बाद से अजय एकादशी सभी लोग करने लगे.
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