TNP DESK:आप सब ने बनारसी, चंदेरी और महेश्वरी साड़ी के बारे में तो खूब सुना होगा लेकिन क्या आपने कभी बंबू साड़ी के बारे में सुना है ? तो आज हम आपको बता रहे हैं खजुराहो की प्रसिद्ध बंबू साड़ी के बारे में.आपको बताए विश्व पर्यटन नगरी खजुराहो सिर्फ मंदिर के लिए ही फेमस नहीं है बल्कि यहां की बांस की साड़ियों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है.
बंबू साड़ियां भी देश-विदेश में प्रसिद्ध
बंबू साड़ियों की मांग हमारे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है, जितने भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं वह खजुराहो की बांस की साड़ी साथ लेकर जरूर जाते हैं. वही खजुराहो की इन शादियों में आदिवासियों का प्राकृतिक प्रेम देखने को मिल जाता है. यह साड़ियां बेहद ही सस्ते दामों में मिलती है.खजुराहो में पश्चिमी मंदिर समूह के नजदीक स्थित श्री राम एंपोरियम शॉप के मालिक रमेश चन्द्र गुप्ता बताते हैं कि जैसे बनारसी, चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां काफी प्रसिद्ध हैं, वैसे ही खजुराहो की बंबू साड़ियां भी देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं. यहां जो भी घूमने आता है, वो इन बांस की साड़ियों को लेकर जरूर जाता है.
बांस से बनी साड़ियों की क्वालिटी
बांस से बनी ये साड़ियाँ न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि पहनने में भी काफी हल्का और आरामदायक होती हैं. इन साड़ियों में बांस के रेशों का इस्तमाल किया जाता है, जो उन्हें हल्का और सांस लेने योग्य बनाता है. इसके अलावा, ये साड़ियाँ एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती हैं, जिससे स्किन पर कोई एफेक्ट नहीं पड़ता है .
साड़ियों में आदिवासी कल्चर का झलक
आपको बताए इन साड़ियों में प्रकृति प्रेम का चित्रण दिखता है, क्योंकि इन साड़ियों को हमेशा से आदिवासी कम्युनिटी ही बनाती आई है. भले ही आधुनिक मशीनों की सहायता से ये साड़ियां बनाई जा रही हों लेकिन आज भी इनमें आदिवासी कल्चर दिखाई देता है. जहां आदिवासी समुदाय के लोग इन सदियों को बड़े ही प्यार लगन और मेहनत से बनाते हैं.
पर्यावरण के प्रति योगदान
बांस से बनी साड़ियाँ न केवल फैशन में नवीनता लाती हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती हैं. बांस एक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो कम पानी में भी उगता है, और इसके उपयोग से वनों की कटाई को रोका जा सकता है.
साड़ियों की कीमत
खजुराहो में बांस से बनी साड़ियों की कीमतें 150 रुपए से शुरू होती हैं, जो उनकी क्वालिटी और डिज़ाइन के अनुसार बढ़ती जाती है. वहीं वहां के लोकल बाजारों में ये साड़ियां आसानी से मिल जाती हैं, और पर्यटकों के बीच भी इनकी मांग बढ़ रही है.
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