टीएनपी डेस्क (TNP DESK): नवरात्रि के नवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की विशेष पूजा की जाती है. माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं और अपने भक्तों के दुखों का नाश करती हैं. इन्हें मां दुर्गा की नौवीं शक्ति के रूप में पूजा जाता है. इस वर्ष शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि 1 अक्टूबर को पड़ रही है, जब कन्या पूजन भी संपन्न होगा.
मान्यता है कि देवी सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर स्वरूप प्राप्त हुआ. वराह पुराण में भगवान शिव ने देवी की महिमा का वर्णन किया है, वहीं ब्रह्माजी ने भी नवमी तिथि पर इनकी एकाग्र मन से आराधना करने का महत्व बताया है. कहा जाता है कि इस दिन मां की साधना करने से सभी जीवों को वरदान मिलता है.
मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है और वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने भी उनसे आठों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं.
मां सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का भी स्वरुप भी माना जाता है. वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता सिद्धिदात्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. पूजन के बाद माता के ध्यान मंत्र का जाप करना शुभ फल देने वाला माना गया है.-
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना यदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायनी ॥
कन्या पूजन विधि
कन्या पूजन के दिन सुबह घर की सफाई करने के बाद हलवा, चने और पूड़ी का भोग बनाएं. इसके बाद मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें. व्रत कथा का पाठ करें. आरती कर भोग लगाएं. इसके बाद कन्या पूजन करें. कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दें और पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें.

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