टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : भाद्रपद यानी भादो महीने के शुक्ल में आने वाली एकादशी तिथि को करमा पर्व मनाया जाता है. करमा पर्व भाई बहनों का त्योहार है, जहां बहनें अपने भाइयों कि लंबी आयु के लिए दिन भर निर्जल  व्रत रखती हैं और रात में करम डाली की पूजा कर व्रत खोलती हैं. मुख्य रूप से यह पूजा आदिवासियों का पर्व मन जाता है जहां लोग प्रकृति की उपासना करते हैं. प्रकृति की उपासना में करम डाल को ईश्वर का प्रतीक मामा जाता है, जिसकी पूजा करमा के दिन की जाती है. यह पूजा झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों में मुख्यतः देखने को मिलता है. इस पर्व को आदिवासी समाज के लोग बड़े धूम धाम से मनाते हैं. करमा में करम डाल की पूजा के बाद रात भर नृत्य गीत और संगीत गाकर लोग खुशियां मनाते हैं.

करमा में बनते हैं ये पकवान 
करमा पर्व के दौरान बहने भाइयों के लिए दिन भर निर्जला व्रत करती हैं और रात में करम डाल की पूजा करके व्रत खोलती हैं. इस दौरन धुतु रोटी यानि की पत्ते पर मिट्टी के बर्तन में बनी रोटी विशेष रूप से बनाई जाती हैं. इसके अलावा अरिसा, मीठे पुए के साथ और भी कई स्थानिया व्यंजन बनायें जाते हैं और लोग पूरे के बाद यह प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही खीरे का भी करमा पूजा में विशेष महत्व है.

क्यों पहनी जाति है लाल पाढ़ की साड़ी 
करमा पर्व में महिलाएं खूब सजती सवारती हैं और नए कपड़े पहन कर तैयार होती हैं. ऐसे में इस पर्व में महिलाएं ज्यादा लाल पढ़ा वाली सुरक्षित सदियों में नजर आती हैं, जो आदिवासी संस्कृति में विशेष महत्व रखता है. लाल रंग संघर्ष का प्रतीक है वहीं सफेद संग शांति को दर्शाता है.ऐसे में महिलाओं की ये लाल पढ़ की सदी संघर्ष के साथ ही शांति का प्रतीक देती हैं.