Ranchi- पिछले तीन दिनों से राजधानी रांची में चल रहे आजसू महाधिवेशन का आज आखिरी दिन था. आज सर्वसम्मत राय से एक बार फिर से सुदेश महतो को आजसू का नया प्रमुख चुन लिया गया. इस मौके पर सुदेश महतो ने सारे प्रतिभागियों के साथ ही पिछले तीन दिनों में विभिन्न संवाद कार्यक्रमों में शामिल होने वाले बुद्धिजीवियों, लेखकों और विशेषज्ञों प्रति अपना आभार जताया.
सभी सुझावों पर अमल का दावा
सुदेश महतो ने इस बात का विश्वास दिलाया कि इन तीन दिनों में जो भी सुक्षाव आये हैं, करीबन 32 हजार गांवों से आये प्रतिभागियों ने जो रास्ता दिखलाया है, बुद्धिजीवियों, लेखकों और विशेषज्ञों ने झारखंड के नवनिर्माण का जो विकल्प दिखलाया है, उन सबों को समेटते हुए आगे का रास्ता और नीतियों को निर्माण किया जायेगा. जिससे के झारखंड को नव निर्माण का रास्ते साफ हो सके. जल जंगल और जमीन पर छाया संकट को दूर किया जा सके. बेरोजगारी, पलायन और गरीबी के दलदल से झारखंड को बाहर निकाला जा सके.
झारखंड के सभी ज्वलंत मुद्दों पर गहन चर्चा
ध्यान रहे कि पिछले तीन दिनों में उद्धोग, खनन, पर्यटन और महिला सशक्तीकरण सहित कई महत्वपूर्ण मुददों पर गहन चर्चा हुई. पूर्व कुलपति रमेश शरण, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मेधनाथ सहित अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल समेत देश-प्रदेश के नामचीन विशेषज्ञों ने झारखंड की भाषा, संस्कृति और समाज के सामने खड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया गया और इसके साथ ही समाधान के संभावित विकल्पों पर संवाद की कोशिश की गई.
हेमंत सरकार पर हमलावर रहे सुदेश
ध्यान रहे कि महाधिवेशन के दूसरे दिन का आगाज करते हुए आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने राज्य की हेमंत सरकार पर बड़ा हमला बोला था, आजसू कार्यकर्ताओं में जोश का संचार करते हुए सुदेश महतो ने इस बात का दावा किया था कि जैसे ही सीएम हेमंत को ईडी का नोटिस मिला तो अचानक से पीएम की याद आने लगी और सरना धर्म कोड को लेकर पत्र लिख दिया. लेकिन यह कोई आज का मामला नहीं है
आन्दोलन ही एक मात्र विकल्प
झारखंड नवनिर्माण संकल्प समागम को संबोधित करते हुए सुदेश महतो ने दावा किया था कि आजसू का जन्म ही आन्दोलन की कोख से हुआ है, हमने अनगिनत कुर्बानियां दी है, लेकिन जिन सपनों को लेकर हमने कुर्बानियां दी थी, आज भी वह अधूरा है, सत्ता और विपक्ष में रहकर हमने राज्य की आधारभूत संरचना और नीतियों के निर्माण में हमने योगदान तो जरुर दिया, लेकिन समय के साथ हमारी आकांक्षा, आन्दोलन और आन्दोलन के औचित्य कमजोर पड़ते गयें. इस हालत में झारखंड का नवनिर्माण के लिए बेहद जरुरी है कि हम अपने पुराने संकल्पों की ओर लौटें, और नव निर्माण के संघर्ष को आगे बढ़ायें.
सुदेश महतो ने कहा कि महाधिवेशन में हम सिर्फ अपने दल की नीतियों पर विमर्श की आशा नहीं करते, हमारी संकल्पना झारखंड आन्दोलन के औचित्य को साबित करने की है, इसके लिए जरुरी है कि हम अपने विमर्श का दायरा को बढ़ाये, अपनी नीतियों को राज्यव्यापी बनाने का प्रयास करें.
कागजों में सिमट गयी विकास की नीतियां
सुदेश महतो ने इस बात का भी दावा किया कि राज्य में ओबीसी, एसटी और एसी से संबंधित सारी नीतियां कागजों में उलझ कर रह गयी, 1932 का खतियान हो या खतियान आधारित नियोजन और स्थानीयता की नीति सब कुछ महज कागजों में सिमट गया. ये वादे जमीन पर उतरते नजर नहीं आते. यदि इन नीतियों को जमीन पर उतारना है तो आजसू को अपने पुराने तेवर और संकल्पों की और लौटना होगा.
ध्यान रहे कि आजसू हर पांच वर्ष के बाद अपने केन्द्रीय महाधिवेशन का आयोजन करती है, यह महाधिवेशन भी उसी कड़ी का हिस्सा है. हालांकि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह महाधिवेशन बेहद महत्वपूर्ण है. दावा किया जाता है कि आजसू इस महाधिवेशन के बहाने अपना शक्ति प्रर्दशन करने की कोशिश कर रही है, ताकि लोकसभा का टिकट वितरण के समय वह भाजपा के समक्ष अपनी दावेदारी को मजबूत आवाज में उठा सकें और उसके हिस्से की सीट में बढ़ोतरी हो सके.
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