पटना(PATNA): बिहार सरकार इस बार नव वर्ष के अवसर पर शराब प्रेमियों को जाम से जाम टकराने का बड़ा तोहफा देने जा रही है? क्या ‘अंगूर की बेटी’ की चाहत रखने वालों के लिए नीतीश सरकार का मन डोल रहा है? क्या नीतीश सरकार ‘लाल पानी’ से पहरा हटाने जा रही है, क्या नीतीश सरकार को इस बात का एहसास हो चुका है कि किसी के बेड रुप में जाकर यह झांकना की उसने क्या खाया और क्या पीया बिहार सरकार का गलत फैसला और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कुठाराघात था.

घर घर जाकर शराबबंदी पर लोगों की राय लेगी सरकार

दरअसल यह सारे सवाल नशा मुक्ति दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सीएम नीतीश के उस बयान से उछलने लगे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि जातीय जनगणना और सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण की तरह ही घर घर जाकर इस बात की पड़ताल की जायेगी कि शराबबंदी को लेकर लोगों की क्या राय है.

शराबबंदी से होने वाले लाभ की गिनती करवाने से अभी भी चूक नहीं रहे हैं सीएम नीतीश

हालांकि इस कार्यक्रम के दौरान भी नीतीश कुमार शराबबंदी से होने वाले लाभ की गिनती करवाने से बाज नहीं आयें, उन्होंने दावा किया कि 2016 शराबबंदी के फैसले के बाद 2018 में इसका बड़ा सकारात्मक असर देखने को मिला था. 2018 के एक सर्वे में इस बात की जानकारी मिली थी कि बिहार में एक करोड़ 64 लाख लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया था. जबकि वर्ष 2023 के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ कि एक करोड़ 82 लाख लोगों लाल पानी से तोबा कर लिया. उस समय 99 प्रतिशत महिलाएं और 92 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी के पक्ष में थें.

नीतीश के दावे अपनी जगह, लेकिन आम लोगों को उस दावे पर नहीं है विश्वास

लेकिन शराबबंदी के प्रभाव को लेकर सीएम नीतीश जिस सर्वे के हवाला देकर अपनी बात को जायज  ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, समाज के एक बड़े तबको उनके इस सर्वेक्षण  की विश्वसनीयता पर सवाल है. उनका दावा है कि जिस सर्वे को लेकर सीएम नीतीश बार बार अपना दावा करते जाते हैं, दरअसल वह कोई सर्वे नहीं होकर सीएम नीतीश को खुश करने के लिए अधिकारियों के द्वारा भेजी गयी मनमर्जी की रिपोर्ट है. और सीएम नीतीश की इसी जिद्द के कारण आज बिहार में हर दिन जहरीली शराब से लोगों की मौत हो रही है.

सीएम नीतीश को हो चुका है अपनी गलती का भान

वहीं कुछ लोगों का दावा है कि सीएम नीतीश को भी इस बात का भान हो चुका है कि शराबबंदी का उनका फैसला एक तुगलकी फरमान से कुछ ज्यादा नहीं था. और इसके कारण सिर्फ लोगों को जहरीली शराब से मौत ही नहीं हो रही है, बल्कि शराबबंदी के फैसले के कारण के कारण बिहार को वित्तीय नुकसान भी हो रहा है, यदि बिहार ने शराबबंदी का गलत फैसला नहीं लिया होता तो आज उसकी वित्तीय स्थिति काफी मजबूत होती. दावा किया जा रहा है कि सीएम नीतीश अब शराबबंदी से पीछे हटने के लिए सम्मान जनक रास्ते की तलाश में है. और यह रायसुमारी उसी की दिशा में एक कदम है, क्योंकि यह उन्हें भी पत्ता की रायसुमारी में लोगों की राय शराबबंदी को हटाने के पक्ष में आना तय है, जैसे ही यह राय सामने आती है, सीएम नीतीश को अपना कदम पीछे खींचने का एक बहाना मिल जायेगा. इस प्रकार बहुत संभव है कि एक जनवरी से पहले सीएम नीतीश शराबबंदी को लेकर कोई बड़ा एलान कर दें.

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