Patna-नीतीश सरकार के द्वारा जारी जातीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार में दलितों की आबादी 20 फीसदी है. इन आंकड़ों से साफ है कि बिहार की सत्ता की चाबी दलितों के हाथ रहने वाली है. नीतीश सरकार की मुसीबत यह है कि दलितों में अपने अधिकारों को लेकर सबसे ज्यादा मुखर और पांच फीसदी आबादी वाला पासवान जाति पहले ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, इस पांच फीसदी मतदाताओं पर चिराग की मजबूत पकड़ मानी जाती है. अभी तक नीतीश कुमार के पास चिराग की काट के लिए कोई मजबूत चेहरा नहीं है, लेकिन इस बीच नीतीश कुमार ने मांझी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है.
ध्यान रहे कि मुसहर और इसकी समकक्ष जातियों को मिलाकर इनकी भी आबादी करीबन पांच फीसदी की है और सीएम तमगा लगने के बाद जीतन राम मांझी की पकड़ इस समुदाय मे काफी मजबूत हुई है. दलितों की दूसरी जाति का भी नीतीश के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है. हालांकि राजद के पास सर्वजीत पासवान और दलितों के कई दूसरे चेहरे भी मौजूद. लेकिन जदयू उस स्थिति में नजर नहीं आती, जिस अशोक चौधरी को नीतीश कुमार इतना भाव देते नजर आते हैं, दलितों की बीच उनकी पकड़ को लेकर कई सवाल है. इस हालत में यदि दलितों को साधने की बात आती है, तो जदयू की निर्भरता राजद और राजद सुप्रीमो पर बनी रहेगी. लेकिन नीतीश कुमार के द्वारा कल जिस तरीके से जीतन राम मांझी को खरी खोटी सुनाई गयी है, उसके बाद यह मुश्किल होता नजर आने लगा है.
यहां हम बता दें कि यदि नीतीश कुमार जीतन राम मांझी की उपेक्षा कर जाते, शायद उन्हे उतना नुकसान नहीं होता, लेकिन विधान सभा के अंदर जीतन राम मांझी से उलझ कर उन्होंने मांझी समुदाय को एक नकारात्मक संदेश दे दिया है, और भाजपा की पूरी कोशिश इस मुद्दे को उछालने की होगी.
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