रांची(TNP Desk):हेमंत की विदाई के बाद जैसे ही चंपाई सोरेन के नेतृत्व में नयी सरकार की ताजपोशी की शुरुआत हुई. झारखंड के सियासी गलियारों में बगावत के बुलबुले फुटने की शुरुआत हो गयी. झामुमो हो या फिर कांग्रेस, विधायकों के बीच असंतोष की ज्वालामुखी धधकने लगी. हर विधायक की नजर मंत्री की कुर्सी पर थी. राजधानी रांची से दिल्ली तक कांग्रेसी विधायक अपने-अपने दुखों की पोटली लेकर घुमते नजर आयें. बजट सत्र के पहले विधायकों के इस तेवर को देख कांग्रेस आलाकमान की नींद भी उड़ी नजर गयी. आनन-फानन में रणनीतिकारों को मान-मनौबल में लगाया गया. और आखिरकर इस आग को मुट्ठी पर सांत्वाना के बालू तले दबाने की कोशिश हुई.

आज भी विधायकों के सीने में दफन है असंतोष की ज्वाला

लेकिन विधायकों का यह दर्द आज भी कायम है. आज भी इन विधायकों को यह लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने हेमंत मंत्रिमंडल के पुराने मंत्रियों को ही चंपाई सरकार में इंट्री करवाकर उनके सियासी भविष्य का कत्लेआम किया है. इसी की एक झलक आज विधान सभा के बाहर पत्रकारों के सवाल का जवाब देते महागामा विधायक दीपिका सिंह भाषा में देखी गयी. दीपिका ने सियासी परिपक्वता का परिचय देते हुए अपने दर्द का एक बार फिर से सार्वजनिक इजहार भी कर दिया और इसके साथ ही अपने आप को पार्टी का सच्चा सिपाही भी घोषित करने की कोशिश भी की. दीपिका ने कहा कि यदि हमारी मांग ली जाती, जिसका हमें आश्वासन दिया गया है, तो झारखंड में कांग्रेस की जड़ें और भी मजबूत होती. हम और भी ताकत के साथ मोदी सरकार की अलोकतांत्रित नीतियों के खिलाफ सड़क पर संघर्ष करते होते. लेकिन इसके साथ ही दीपिका महागठबंधन की सरकार को रोजगार के मोर्च पर कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करती हुई दिखी. पेपर लीक के राज्य सरकार की  विफलता बताने की कोशिश करते हुए दीपिका ने कहा जिस साजिश के तहत पेपर लीक को अंजाम देकर चंपाई सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गयी है, वह एक खतरनाक संकेत हैं, और इसके कारण हम रोजगार के मोर्चे पर पिछड़ते जा रहे हैं. साफ है कि दीपिका के सीने में बगावत और असंतोष की आग अभी भी धधक रही है, कुछ यही हालात दूसरे विधायकों की भी है.

नाराज विधायकों को पूर्व कांग्रेसी सांसद फुरकान अंसारी की खरी-खरी

लेकिन इस अंसतोष और बगावत के तेवर के बीच पूर्व गोड्डा सांसद और झारखंड की सियासत में कांग्रेस का एक बड़ा सियासी चेहरा फुरकान अंसारी ने नाराज विधायकों को नसीहत भी दी है, उन्होंने कहा कि प्रदेश संगठन में जिस बदलाव की मांग कांग्रेसी विधायकों के द्वारा की जा रही है, उसमें तो काफी देर हो चुकी है, यह मांग तो पहले की जानी चाहिए थी, लेकिन उस वक्त तो किसी ने भी इसकी आवाज नहीं उठायी, आज जब हेमंत सोरेन काल कोठरी में कैद किये जा चुके हैं, लोकसभा का चुनाव सिर पर खड़ा है, किसी भी समय लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बज सकती है, इस मांग का उद्देश्य क्या है, क्योंकि अब चुनाव तो राजेश ठाकुर के नेतृत्व में लड़ा जाना है, लोकसभा चुनाव के पहले प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा बदलने का कोई औचित्य नहीं है. यहां ध्यान रहे कि फुरकान अंसारी गोड्डा संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट के दावेदार माने जा रहे हैं. हालांकि 80 पार इस पुराने सिपाही पर अब कांग्रेस दाव लगायेगी या नहीं, वह एक अलग सवाल है, लेकिन उनके समर्थक आज भी फुरकान को गोड्डा के सियासी अखाड़े का मजबूत दावेदार बता रहे हैं.

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