धनबाद(DHANBAD): झारखंड का संथाल परगना राजनीतिक दलों के लिए एक बार फिर "तीर्थ स्थल" बन गया है . दौरा पर दौर शुरू हो गया है. यह दौरा भाजपा की ओर से भी शुरू किया गया है, तो कांग्रेस भी पीछे नहीं है. कांग्रेस के झारखंड प्रभारी सहित अन्य नेता 30 जून तक संथाल परगना में रहेंगे और विभिन्न जिलों में कार्यक्रम करेंगे. आखिर कांग्रेस का संथाल परगना की तरफ झुकाव क्यों हुआ है, समय के साथ इसके संकेत मिलेंगे. फिलहाल पार्टियों के "डेरा" के बावजूद झामुमो निश्चित है. उसे पूरा भरोसा है कि संथाल पर उसका कब्जा था ,है और रहेगा. इधर, एक बात तो दिख रही है कि फिलहाल झारखंड में 56 सीटों के साथ महागठबंधन की सरकार चल रही है.
30 जून को हूल दिवस पर होगा महाजुटान
हेमंत सोरेन उसका नेतृत्व कर रहे है. लेकिन धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा है कि महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच तालमेल का अभाव है. वैसे 30 जून को हूल दिवस पर संथाल परगना में सभी दलों के लोग जुटेंगे. लेकिन इसके पहले से ही उपस्थिति दर्ज कराने की होड़ मची हुई है. यह बात सच है कि संथाल की धरती ऐतिहासिक धरती है और संथाल के लोग झारखंड मुक्ति मोर्चा को अधिक पसंद करते है. इस वजह से 2024 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा को बड़ी सफलता मिली. यह बात भी सच है कि फिलहाल संथाल की राजनीति के लिए कांग्रेस को झामुमो का सहारा लेना पड़ेगा,कांग्रेस सक्रिय हो गई है. संथाल में अपनी पैठ मजबूत करने की लगातार कोशिश कर रही है. लेकिन झामुमो अभी बिलकुल चुप बैठा है.
2024 में 17 सीटों पर महागठबंधन की हुई थी जीत
2024 की अगर बात करें तो संथाल परगना की कुल 18 सीटों पर महागठबंधन ने 17 सीटों पर कब्जा किया था. झामुमो अकेले 11 सीटों पर जीत दर्ज किया था. चार सीट कांग्रेस की झोली में गई थी. दो सीट राजद के पास आया था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी संथाल के बरहेट सीट से ही विधायक है. केवल जरमुंडी विधानसभा सीट से भाजपा की उम्मीदवार देवेंद्र कुंवर जीत पाए थे. वैसे, भी यह बात तो अब पुरानी हो गई है कि झारखंड की राजनीति संथाल के आसपास घूमती है और झारखंड के सत्ता की चाबी भी संथाल के पास ही होती है. अभी हाल ही में संथाल परगना में झारखंड दो पूर्व मुख्यमंत्री की मुलाकात हुई थी. इसे झारखंड की भाजपा की राजनीति में टर्निंग पॉइंट कहा जा रहा है.
रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी की दुमका में हुई थी मुलाकात
रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी दोनों की मुलाकात दुमका सर्किट हाउस में हुई थी. रघुवर दास पहले से ही संथाल में थे, तो रविवार की सुबह बाबूलाल मरांडी दुमका पहुंचे और दोनों में बातचीत हुई. हालांकि इस बातचीत के कई माने - मतलब निकाले जाते है. लेकिन रघुवर दास संथाल में एक बार फिर सक्रिय हो गए है. जब वह मुख्यमंत्री थे, तब भी दुमका और संथाल परगना में उन्होंने कई योजनाओं की शुरुआत कराई थी. लेकिन वह वोटों को भाजपा के पक्ष में नहीं कर पाए थे. नतीजा हुआ की 2019 के चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई. अब फिर एक बार संथाल परगना राजनीतिक दलों का तीर्थ स्थल बन गया है. 30 तारीख को तो संथाल परगना में हूल दिवस के मौके पर महाजुटान होगा. सभी दलों के लोग पहुंचेंगे
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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