धनबाद(DHANBAD): शिबू सोरेन आज हमारे बीच नहीं है. लेकिन हर वह आदमी , जो हक और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ता है. दिशोम गुरु शिबू सोरेन को सलाम कर रहा है. शिबू सोरेन अब नहीं है. लेकिन उनकी सोच, संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाता रहेगा. आज झारखंड में सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन शिबू सोरेन की सोच की ही उपज थी. यह अलग बात है कि तीन कद्दावर शख्सियतों ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. शिबू सोरेन के रूप में अब तीसरा पिलर भी हम लोगो के बीच नहीं रहा. . 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ मैदान में विनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन ने मिलकर झामुमो की स्थापना की थी. मकसद था अलग राज्य की लड़ाई लड़ना. झामुमो के गठन के दिन ही विनोद बाबू पार्टी के पहले अध्यक्ष चुने गए. शिबू सोरेन उस वक्त महासचिव बने थे.
1987 में शिबू सोरेन पहली बार झामुमो के अध्यक्ष बने थे
उसके बाद 1987 में शिबू सोरेन पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने. लेकिन उसके कई सालों बाद अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए हेमंत सोरेन पहली बार पार्टी के अध्यक्ष चुने गए पार्टी को जानने वाले बताते हैं कि 1973 से लेकर 1984 तक विनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रहे. 1984 में परिस्थितिया बदली तो शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को अध्यक्ष बना दिया. निर्मल महतो की हत्या के बाद 1987 में शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली और करीब 38 वर्षों तक अध्यक्ष रहे. इस बीच झामुमो में टूट भी हुई. शिबू सोरेन पहली बार चुनाव धनबाद के टुंडी से लड़ा ,लेकिन पूर्व मंत्री सत्यनारायण दुदानी के हाथों वह पराजित हो गए. इस हार ने शिबू सोरेन को इतना विचलित किया कि वह टुंडी छोड़कर दुमका चले गए और फिर दुमका में ही अपनी राजनीति कद का विस्तार किया. वहीं से सांसद चुने गए.
अलग राज्य की लड़ाई टुंडी के जंगलों से शुरू की थी
लेकिन शिबू सोरेन अलग झारखंड राज्य की लड़ाई टुंडी के जंगलों से शुरू की थी. टुंडी के मनियाडीह में शिबू आश्रम आज भी इस आंदोलन का गवाह है. वह अपने आंदोलन में साथियों के साथ यहां बैठक करते थे. टुंडी से शुरू हुई अलग झारखंड राज्य की लड़ाई अभिवाजित बिहार के समय पूरे संथाल -कोल्हान क्षेत्र में फैल गई थी. 80 के दशक के बाद झामुमो ने संसदीय व्यवस्था में भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी. एकीकृत बिहार में झामुमो ने अपनी राजनीतिक धमक शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनाए रखी. लंबी लड़ाई के बाद 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य की स्थापना हुई. 2024 में गठबंधन तो प्रचंड बहुमत मिला ही, झारखंड मुक्ति मोर्चा भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. यह अलग बात है कि 2024 के पहले इतनी बड़ी संख्या में झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीट नहीं आई थी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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