रांची(RANCHI ): झारखंड हाईकोर्ट में आज मनरेगा मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार से जवाब तलब किया कहा कि राशि निकासी जब हुई थी, तब राज्य सरकार ने एफआईआर दर्ज क्यों नहीं किया. जब ईडी ने कार्रवाई की तब सरकार को ख्याल आया चीफ जस्टिस ने सरकार से स्पष्ट पूछा कि अगर ये ऑफिस ऑफ प्रोफिट का मामला है, तो करप्शन से इंकार क्यों. 

2019 में दाखिल हुई थी जनहित याचिका 

मनरेगा घोटाला खूंटी से जुड़ा हुआ है. इसको लेकर हाईकोर्ट में 2019 में जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया था कि मनरेगा से जुड़ी योजनाओं में 18.06 करोड़ की आर्थिक अनियमितता की गई. एसीबी ने इस मामले में सिर्फ इंजीनियरों पर ही प्राथमिकी दर्ज की है। जबकि तत्कालीन डीसी पर भी गड़बड़ी के आरोप हैं. एसीबी इसकी जांच नहीं कर रही है। याचिका अरुण कुमार दुबे ने दाखिल की है. पिछली सुनवाई के दौरान ईडी ने अदालत को बताया था कि शेल कंपनियों के जरिए मनी लांड्रिंग की जाती थी। इसमें बड़े अधिकारी और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी शामिल हैं.

इसे भी पढ़ें: 

मुख्यमंत्री से जुड़े खनन और शेल कंपनी मामले की सुनवाई अब 17 जून को होगी

माइनिंग लीज मामले में झारखण्ड हाई कोर्ट ने के मुख्य न्यायधीश डॉक्टर रवि रंजन और न्यायधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत की अदालत ने याचिका की मैनटैनेबिलिटी को मानते हुए सुनवाई की तारीख 10 जून को निर्धारित की थी. आज कोर्ट में बचाव पक्ष के तरफ से कहा गया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में SLP  दायर किया गया है. हाई कोर्ट ने कहा है कि कहीं भी चुनौती देने की आजादी है. जबतक सुप्रीम कोर्ट से आदेश नहीं आता है तबतक सुनवाई होगी.

प्रार्थी शिव शंकर शर्मा ने दायर की थी जनहित याचिका 

माइनिंग लीज से जुड़े मामले में शिव शंकर शर्मा ने याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा गया है की CM हेमंत सोरेन के जिम्मे खनन और वन पर्यावरण विभाग का भी प्रभार है. CM  ने खुद पर्यावरण क्लियरेंस ले लिए आवेदन देकर खनन पट्टा हासिल किया है. इस तरह का कार्य करना पद का दुरुपयोग और जनप्रतिनिधि अधिनियम का भी उल्लंघन है. इस पूरे मामले की CBI से जाँच कराई जाये. साथ ही प्रार्थी ने याचिका के माध्यम से हेमंत सोरेन की सदस्यता भी रद्द करने की मांग भी की है.