देवघर (DEOGHAR) बढ़ती महंगाई, प्रतिस्पर्धा, स्थानीय राजनीति  जैसी समस्याओं के कारण संताल परगना का प्रतिष्ठित उद्योग ला ओपाला  बंदी के कगार पर है. देश विदेशों में देवघर की पहचान द्वादश ज्योतिर्लिंग के अलावा उद्योग से भी है. जसीडीह क्षेत्र में डाबर और मधुपुर में ला ओपाला (la opala) कंपनी की पहचान पूरे विश्व में रही है. एक समय था जब संताल परगना जैसे पिछड़े क्षेत्र में पलायन रोकने के लिए इन कंपनियों ने लाखों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराया था. समय के साथ डाबर कंपनी अपना बोरिया बिस्तर समेत ली, लेकिन ला ओपाला अभी भी स्थानीय स्तर पर सैकड़ों लोगों का जीविकोपार्जन का साधन बनी हुई है. लेकिन बढ़ती महंगाई, बाज़ार में उच्च प्रतिस्पर्धा और स्थानीय राजनीति  आदि कारणों से अब धीरे धीरे बंदी के कगार पर पहुंच गयी है.

50 से 60 करोड़ का सलाना टर्न ओवर

ला ओपाला कम्पनी की शुरुआत 16 दिसंबर 1987 को कोलकाता के व्यवसायी झुनझुनवाला के द्वारा की गई थी. ग्लास वेयर की प्रोडक्ट का निर्माण शुरू में किया गया था. यहां की बनी सामग्रियों  की विदेशों में मांग बढ़ने लगी. कंपनी प्रबंधन ने 1995 में परिसर में दूसरे यूनिट को स्थापित कर ग्लास के बाद क्रिस्टल वेयर प्रोडक्ट का निर्माण भी करने लगी. तब से कुछ महीने  पहले तक 500 मजदूर प्रतिदिन अपनी मेहनत से 10 टन तक उत्पादन करते थे. उत्पादन का 90 प्रतिशत सामान  एक्सपोर्ट भी होता था. 50 से 60 करोड़ का सलाना टर्न ओवर देने वाली इस कंपनी ने बहुत उतार चढ़ाव भी देखा है.

कम हो गया उत्पादन

2017 में स्थानीय राजनीति की भेंट चढ़ने के कारण कई महीनों तक बंद भी रहा. प्रबंधन, स्थानीय प्रशासन, मजदूर और नेताओं के साथ लगातार बैठक के बाद फिर से चालू हुआ. फिर से 500 मजदूर तीन शिफ्ट में काम करने लगे. लेकिन अभी हालात ऐसे हैं कि कम्पनी उत्पादन की लागत, बाजार में प्रतिस्पर्धा और मांग की कमी के अलावा अत्याधुनिक मशीन के बगैर नो प्रॉफिट और नो लॉस पर बीते  कुछ वर्षों  से चल रही है. कोरोना और बढ़ती महंगाई से कंपनी का उत्पादन पर बहुत असर हुआ है. पहले रोजाना 10 टन की जगह अभी 8.5टन माल का ही उत्पादन हो रहा है. धीरे धीरे बाजार की प्रतिस्पर्धा अब मज़दूर सहित प्रबंधन की चिंता बन गयी है. मजदूर प्रबंधन से उचित कदम उठाने की मांग कर रहे हैं. इस क्षेत्र की बहुत बड़ी समस्या शुरू से रही है. इसको रोकने के लिए इस तरह की कंपनी बहुत हद तक कारगर सिद्ध हो पाई है. अब अगर इस कम्पनी में भी ताला लग जाएगा तो हजारों लोगों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक परेशानियों से जूझने  से इनकार नही किया जा सकता. जरूरी है सरकार, प्रबंधन को आगे आकर कोई उचित और दूरगामी निर्णय लेने की पहल करने की.


रिपोर्ट : ऋतुराज सिन्हा (देवघर)