रांची(RANCHI): झारखंड आंदोलनकारी शहीद निर्मल महतो की 73 वां जन्म दिवस हर तरफ धूम धाम से मनाया जा रहा है.झारखंड के सभी कोने से एक आवाज़ उठ रही है कि शहीद निर्मल महतो के सपनों का झारखंड कहां पीछे छूट गया. निर्मल महतो झारखंड आंदोलनकारी रहते खूब लड़ाई लड़ी कभी भी किसी के सामने झुकना पसंद नहीं किया. जब बात झारखंड की आती थी तो बड़े बड़े बड़े अधिकारी और नेता के आँख में आँख डाल कर बात करते थे.आखिर में निर्मल महतो तो हमारे बीच नहीं रहे लेकिन हमें उनकी लड़ाई और साहस के जरिए एक अलग राज्य जरूर मिला. लेकिन उनके सपनों का राज्य अब भी बाकी है.
निर्मल महतो का जन्म 25 दिसंबर 1950 को पूर्वी सिंहभूम के उलियान गाँव में हुआ था.बचपन से उन्होंने देखा की झारखंडी लोगों से किस तरह के व्यवहार किया जाता है. जब बड़े हुए तो झारखंड के लोगों की पीड़ा देख आंदोलन की शुरुआत कर दिया. लोग जुटते गए और अलग राज्य की मांग उठ गई. निर्मल महतो को उम्मीद और विश्वास थी की जब अपना अलग राज्य होगा तो झारखंड की अस्मिता और लोगों को सम्मान मिलेगा. एक अलग राज्य हर झरखंडियो के सपने का राज्य होगा.जहां चैन सुकून हो और हसता खिलखिलाता कर झारखंडी मिले. किसी के चेहरे पर शोषण और प्रताड़ित होने का भय ना दिखे.
निर्मल महतो शिक्षा पर जोर देते थे अपने आंदोलन में एक नारा जोर शोर से बुलंद किया था की पढ़ो और बढ़ो.निर्मल महतो ऐसा मानते थे की जब हर आदिवासी शिक्षा हासिल कर लेगा तो उसे अपने अधिकार को मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जब उसे अधिकार से वंचित किया जाएगा.तो अपने हक और अधिकारी को छिन कर ले लेगा. निर्मल महतो सभी को पढ़ाई के लिए जागरूक करते थे.
लेकिन एक सवाल सभी के मन में है कि क्या शहीद निर्मल महतो के सपनों राज्य बन गया है? जवाब यही मिलेगा नहीं. राज्य 15 नवंबर 2000 में तो अलग हो गया. उम्मीद लोगों में जगी की जिस उद्देश्य से निर्मल महतो ने अलग राज्य की लड़ाई शुरू की थी वह पूरी हो गई. झारखंडियो को एक अलग अपना राज्य मिल गया. अब हर ऑर खुशहाली होगी.लेकिन बदला कुछ नहीं यहाँ 23 वर्ष बीत जाने बाद भी आदिवासी की जमीन की लूट मची हुई है. आदिवासी प्रताड़ना का शिकार बना हुआ है.उम्मीद अब भी लोगों में कायम है कि कोई तो सरकार ऐसी आएगी जो निर्मल महतो के सपनों का झारखंड बनाएगा.
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