रांची (RANCHI): मांडर के शिवम लोहरा की सांस चलते-चलते फूलने लगती. वही हाल उसका खेल के बाद होता. दस साल तक इस डॉक्टर से उस क्लिनिक तक वो चक्कर लगाता रहा, लेकिन कोई पकड़ ही न सका कि उसे थैलेसीमिया है. निजी क्लीनिक में उपचार के बाद पकड़ में नहीं आने के कारण उlका इलाज सदर अस्पताल में कराया गया, तो उसके पिता को पता चला कि बेटे को थैलेसीमिया है. ऐसे कई बच्चे आज सदर अस्पताल पहुंचे थे.  पैथोलॉजी विभाग ने ऐसे बच्चे और उनके गार्जियन के लिए काउंसलिंग का आयोजन किया था. जिसमें थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे और उनके रिश्तेदार को डॉक्टरों की टीम ने थैलेसीमिया के लक्षण, उपचार, और जागरूकता के गुर सिखाए.

15 वर्ष के बच्चे को पांच साल पहले डायग्नोस हुआ थैलेसीमिया 

"THE NEWS POST" ने जब कई लोगों से बात की तो पता चला कि कई बच्चे खेलने में कमजोरी महसूस करते हैं तो कइयों के हाथ -पैर में दर्द होता है. खून में ऑक्सीजन की कमी होने से बच्चों को अधीक कमजोरी महसूस होती है. कई बच्चों का विकास बचपन में हीं रुक गया है. एक पंद्रह साल के बच्चे ने बताया कि उसके थैलेसीमिया से ग्रसित होने का पता उसे पांच साल पहले लगा.

लखमनिया उरांव  की जुड़वां बेटियां का इलाज

लोहरदगा से आई लखमनिया उरांव  ने बताया कि वो अपनी दस वर्षीय जुड़वां बेटियों का इलाज सदर अस्पताल में कराने हर महीने रांची आती हैं. उन जुड़वां बहनों को बचपन से ही थैलेसीमिया की बीमारी थी. खून की कमी होने के कारण उनके शरीर का विकास रुक चुका है. सदर अस्पताल में हर महीने उन्हें खून चढ़ाया जाता है. सरकारी इलाज से उनको लाभ मिल रहा है. लखमनिया उरांव के तीसरे बच्चे में भी  थैलेसीमिया के आंशिक लक्षण हैं. उनके शरीर का भी विकास रुक चुका है. 

जागरूकता की कमी, सही समय पर डायग्नोस जरूरी

डॉ. शिप्रा शरण ने बताया कि माता-पिता में किसी एक को भी अगर यह बीमारी होती है, तो बच्चे को यह बीमारी होने से कोई नहीं रोक सकता है. बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाता है. इसके इलाज भी महंगे होते हैं. इस बीमारी को लेकर जागरूकता की भारी कमी दिखती है. खान-पान में प्रोटिन की प्रचुर मात्रा लेने की भी सुझाव दिया. झारखंड में 60 से 70 प्रतिशत थैलेसीमिया के मरीज हैं, पर सदर अस्पताल में 4 से 5 प्रतिशत मरीजों का उपचार होता है. ब्लड सैंपल पॉजिटिव आने पर सभी को कॉल करके 17 अगस्त को परिजन के साथ -साथ बच्चों को भी जागरूकता के लिय सदर अस्पताल बुलाया गया था. 

थैलेसीमिया से कौन ग्रस्त है

यह स्थिति आमतौर पर उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन जीन के माध्यम से माता-पिता से बच्चों तक जाती है. यदि आपके पास थैलेसीमिया का पारिवारिक इतिहास है, तो आपको यह स्थिति होने का खतरा बढ़ जाता है.

थैलेसीमिया माइनर भी विकसित कर सकते हैं

अपने माता-पिता से हीमोग्लोबिन उत्पादन में शामिल असामान्य और उत्परिवर्तित जीन विरासत में मिला है. यदि आपके माता-पिता में से कोई एक थैलेसीमिया का वाहक है, तो आप स्वयं रोग के वाहक बन सकते हैं, हालांकि आपको कोई लक्षण नहीं होंगे. आप थैलेसीमिया माइनर भी विकसित कर सकते हैं, जिस स्थिति में आप मामूली लक्षण विकसित कर सकते हैं.

थैलेसीमिया की जटिलताएं क्या हैं?

अत्यधिक आयरन : थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के शरीर में बहुत अधिक आयरन हो सकता है, चाहे वह बीमारी से हो या बार-बार रक्त चढ़ाने से.

संक्रमण के लिए संवेदनशीलता

थैलेसीमिया के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. हड्डी विकृति, विशेष रूप से चेहरे में, गहरा पेशाब,विलंबित वृद्धि और विकास,अत्यधिक थकान और थकान, या पीली त्वचा.ये सब सामान्य लक्षण थैलीसीमिया के हैं.