दुमका (DUMKA): भारत के जुगाड टेक्नोलॉजी का लोहा दुनियां मानती है. यहां के लोग कबाड़ से इस कदर जुगाड बना देते है जिसे देख लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं. ऐसा ही एक जुगाड तकनीक का वीडियो इन दिनों दुमका में वायरल हो रहा है. वीडियो परिसदन का है। अगर आपको भी यह जुगाड देखनी हो तो परिसदन के चांद भैरव ब्लॉक का कमरा बुक कराना होगा, बशर्ते यह टेक्नोलॉजीया भारत से बाहर नहीं जानी चाहिए.

वायरल वीडियो ने खोला जुगाड का राज

सबसे पहले आप वायरल वीडियो देखिए। पानी के दो बॉटल को जोड़कर वाश बेसिन में लगे नल से कनेक्ट कर पानी बाल्टी में भरा जा रहा है. आप भी सोच रहे होंगे कि वाश बेसिन तो हाथ धोने के लिए लगाया जाता है तो फिर भला बॉटल के सहारे वाश बेसिन के नीचे रखे बाल्टी में पानी भरने की क्या जरूरत? हम  आपको वह भी बताएंगे लेकिन पहले यह बता दें कि कमरा में ठहरने वाले मेहमान को इस देशी जुगाड तकनीक से अवगत करा दिया जाता है ताकि उन्हें परेशानी का सामना न करना पड़े.

सर्किट हाउस के जीर्णोद्धार पर पानी की तरह बहाया गया रुपया

वायरल वीडियो की तहकीकात में जब The News Post की टीम परिसदन पहुंची तो बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया. परिसदन को तीन भाग में बांटा गया है. सिदो कान्हु ब्लॉक, फूलो झानो ब्लॉक और चांद भैरव ब्लॉक. चांद भैरव ब्लॉक में 32 कमरे है, जिसे रीजनल्स ऑफिसर्स 32 रूम्स गेस्ट हाउस नाम दिया गया है. झारखंड की उपराजधानी दुमका का सर्किट हाउस है तो जिला प्रशासन द्वारा इसे सजाने संवारने में कोई कोताही नहीं बरती गई है. इंटीरियर डेकोरेशन से लेकर वाश रूम तक ब्रांडेड कंपनी का सामान लगाया गया है. लेकिन जैसे ही आप रिसेप्शन कांटर तक पहुंचेंगे तो जलती बुझती लाइट एक नजर में आपको भूतहा हवेली का एहसास होगा. इसके बाबजूद बिना डरे जब आप अपने कमरे में प्रवेश करेंगे तो आपको कर्मी द्वारा वाश रूम में देशी जुगाड के सहारे नहाने का तरीका बता दिया जाएगा, ताकि आपको परेशानी का सामना न करना पड़े.

शॉवर बनी शोभा की वस्तु, बॉटल के सहारे नहाने है लोग

अब हम बात कर लेते है उस जुगाड तकनीक की जिसकी चर्चा इन दिनों दुमका में हो रही है. दरअसल सभी कमरा के वाश रूम में आधुनिकतम तकनीक से लैश ब्रांडेड कंपनी का शॉवर लगाया गया है ताकि आप आराम से स्नान कर सकें. इसके बाबजूद आपको नहाने के लिए देशी जुगाड का सहारा लेना होगा क्योंकि किसी भी शॉवर में पानी का फ्लो इतना नहीं जो आपके शरीर को भींगा सके. इस स्थिति में प्रत्येक वॉशरूम में पानी के दो खाली बॉटल को जोड़ कर रखा गया है. बेसिन में लगे नल में आपको बॉटल का एक छोर लगाना पड़ेगा जबकि दूसरे छोर के नीचे बाल्टी रख कर नल को खोलना पड़ेगा. बॉटल के सहारे पानी बाल्टी में भरेगा तब आप आराम से बैठ कर स्नान कर सकते है. है न कमाल का यह देशी जुगाड.

भवन निर्माण प्रमंडल पर है रखरखाव की जिम्मेदारी

सर्किट हाउस के रखरखाव की जिम्मेदारी भवन प्रमंडल के पास है. इस बाबत हमने भवन प्रमंडल के सहायक अभियंता अनिल कुमार बेसरा से बात की. पहले तो वह मानने के लिए तैयार ही नहीं हुए कि स्थिति इतनी बदतर है. जब उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया तो उन्होंने जल्द ही समस्या के समाधान का भरोसा दिया. उन्होंने यह भी बताया कि लगभग 3 वर्ष पूर्व लगभग 49 लाख रुपए की लागत से सर्किट हाउस के रिनोवेशन का कार्य किया गया है. बेहतर लुक देने के लिए ब्रांडेड कंपनी का उपकरण लगाया गया. लेकिन जब मामला संज्ञान में आया तो कंपनी को जानकारी दी गई कि शॉवर अच्छा से काम नहीं कर रहा है. कंपनी का मेकेनिक आया भी लेकिन शॉवर देखने के बाद उसने ठीक करने के बजाय हाथ खड़े कर दिया. उसके बाद विभाग के स्तर से पत्राचार किया गया है, लेकिन कंपनी से कोई जवाब नहीं मिला है. 5 साल का वारंटी पीरियड है. उन्होंने जल्द ही इसके समाधान का भरोसा दिया.

अभियंता भले ही दे समाधान का भरोसा लेकिन जानकार बताते है कुछ और

अभियंता भले ही समस्या के समाधान का भरोसा दे, लेकिन जानकार बताते है कि वर्तमान परिस्थिति में यह शॉवर काम नहीं कर सकता. क्योंकि जो शॉवर लगाया गया है उसके लिए या तो पानी की टंकी और ऊंचाई पर होनी चाहिए या फिर प्रेशर पंप का सहारा लेना पड़ेगा. सूत्रों की मानें तो प्रेशर पंप से चेक किया गया तो जगह जगह से पाइप फट जा रहा है क्योंकि पानी के कनेक्शन के लिए जनरल वायरिंग किया गया है.

उपराजधानी के सर्किट हाउस की हो रही बदनामी का जिम्मेवार कौन!

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है. दुमका को उपराजधानी का दर्जा प्राप्त है और उपराजधानी का सर्किट हाउस अपनी बदली पर जार बेजार होकर रो रहा है. विभिन्न जगहों से आकर सर्किट हाउस में ठहरने वाले लोग उपराजधानी से क्या संदेश लेकर जाते होंगे इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते है. जानकार बताते है कि एक शॉवर की कीमत 30 से 32 हजार रुपए के बीच है. इस तरह के शॉवर के उपयोग के लिए प्रेशर पंप का होना जरूरी है. इसके बाबजूद इस मॉडल के शॉवर को लगाने की अनुशंसा आखिर क्यों दी गई. कहीं पर्दे के पीछे कमीशन का खेल तो नहीं? वारंटी पीरियड में होने के बाबजूद विभाग संबंधित कंपनी पर दबाव बनाकर इसे अभी तक ठीक क्यों नहीं करा पाया? 3 वर्ष बीत गए क्या और 2 वर्ष बीतने का इंतजार किया जा रहा है? सवाल कई है. जवाब तभी मिल पाएगा जब मामले की जांच हो.  अगर सरकारी राशि का बंदरबांट हुआ तो जिला प्रशासन को चाहिए कि मामले की जांच कराते हुए व्यवस्था को दुरुस्त करे. क्योंकि बदनामी उपराजधानी के सर्किट हाउस की हो रही है.

रिपोर्ट: पंचम झा