धनबाद(DHANBAD): यह संस्थान देश के खनन उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. 9 दिसंबर 1926 को इसका नाम भारतीय खनि विद्यापीठ था, लेकिन 2016 में इसे आईआईटी का टैग मिल गया. उसके बाद यह संस्थान आईआईटी (आईएसएम) के नाम से जाना जाने लगा. धनबाद का आईआईटी (आईएसएम) बहुत जल्द 100 साल का होने जा रहा है. आईएसएम की स्थापना 1926 में हुई थी. बाद में आईएसएम को ही लंबी लड़ाई के बाद आईआईटी का टैग दे दिया गया. उसके बाद संस्थान का तेजी से विस्तार हुआ. इस वर्ष का दीक्षांत समारोह कुछ खास करने की पूरी तैयारी चल रही है. वैसे, तो आईएसएम के कार्यक्रम में कई राष्ट्रपति आ चुके है. संस्थान का पहला दीक्षांत समारोह 1968 में हुआ था.
1987 के बाद से लगातार हो रहा दीक्षांत समारोह
1987 के बाद से लगातार हर एक वर्ष दीक्षांत समारोह हो रहा है . आईएसएम की अपनी विशेष पहचान है. यहां से निकले छात्र देश-विदेश में फैले हुए है. विदेश में भारत का झंडा बुलंद किए हुए है. इस साल के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुख्य अतिथि होंगी. पहली अगस्त को होने वाले दीक्षांत समारोह में शामिल होने के लिए उनकी अनुमति मिल गई है. राष्ट्रपति पहली अगस्त को दिन के 11 बजे आईआईटी धनबाद पहुचेंगी. एक घंटे तक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगी. समारोह में लगभग 200 बच्चो को डिग्री दी जाएगी. इस कार्यक्रम में झारखंड के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी निमंत्रित किया जा रहा है.
9 दिसंबर 1926 को हुई थी स्थापना
बता दें कि भारतीय खनन विद्यापीठ को औपचारिक रूप से 9 दिसंबर 1926 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा खनन और अनुप्रयुक्त भूविज्ञान के विषयों के साथ देश में खनन गतिविधियों से संबंधित प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए खोला गया था. 1967 में इसे यूजीसी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत एक डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था. अपनी स्थापना के बाद से, आईआईटी (आईएसएम) ने अपनी गतिविधियों का काफी विस्तार किया है, और वर्तमान में इसे एक संपूर्ण प्रौद्योगिकी शिक्षा संस्थान माना जा सकता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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