धनबाद(DHANBAD) : 2009 में झरिया पुनर्वास के लिए पहली बार मास्टर प्लान की मंजूरी दी गई थी. इस पर 7112.11 करोड़ रुपए अनुमानित खर्च की योजना थी. फिर 2025 के जून महीने में 59 40 करोड़ रुपए की संशोधित मास्टर प्लान को मंजूरी मिली है. बावजूद इस बरसात धनबाद कोयलांचल पूरी तरह से धंसान और गोफ की चपेट में है. लगातार बैठकों का दौर जारी है. पुनर्वास की प्रतीक्षा में लोग जान जोखिम में डालकर अग्नि प्रभावित इलाकों में रह रहे है. कहा जा सकता है कि धनबाद कोयलांचल धंसान और गोफ की  चपेट में आ गया है. 

धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन के पास भी धंसान 

2 दिन पहले बांसजोड़ा स्थित गड़ेड़िया साइडिंग के समीप धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन से मात्र 10 मीटर की दूरी पर जमीन में दरार पड़ गई थी. इससे गैस रिसाव हो रहा है. इस दरार ने रेल प्रशासन और स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ा दी है. गैस रिसाव की सूचना पर रेल अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण भी किया है. इतना ही नहीं, घनुडीह दुर्गा मंदिर के समीप डोली निषाद नामक महिला का घर भी बुधवार की रात जमींदोज  हो गया. संयोग अच्छा था कि घर में कोई नहीं था, अन्यथा बड़ा हादसा हो सकता था. यहां भी गैस रिसाव जारी है. भू-धंसान में घर का एक कमरा 5 फीट जमीन में समा गया था. सिजुआ क्षेत्र के तेतुलमारी पांडेयडीह, बिहार धौड़ा  में भी गोफ बनने से भय का माहौल है. 

2021 में 44 करोड की लगत से बनी सड़क में भी आई दरार 

इधर, झरिया-बलियापुर मुख्य  मार्ग के लालटेन गंज के समीप सड़क में गुरुवार को जोरदार आवाज के साथ गोफ  बन गया.  गोफ  से काला धुआं निकल रहा है.  आसपास के लोगों को सांस लेने में भी परेशानी हो रही है. गोफ बनने से सड़क पर दरार पड़ गई है. गोफ बनने से झरिया-बलियापुर मुख्य मार्ग पर खतरा मंडराने लगा है. सड़क पर करीब 50 मीटर तक दरार पड़ गई है. 2021 में सड़क का 11 किलोमीटर 44 करोड रुपए की लागत से बनाई गई थी. लेकिन कई स्थानों पर दरारे पड़ने  शुरू हो गई है. यह सड़क झरिया सहित आसपास के दर्जनों स्थानों को बंगाल से जोड़ती है. इधर, केंद्र सरकार ने संशोधित झरिया मास्टर प्लान की मंजूरी दी है. संशोधित मास्टर प्लान में 5940 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है. योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा.  

1916 में पहली बार भूमिगत आग का पता चला था 

झरिया कोयला खदान में आग लगने की पहली घटना वर्ष 1916 में सामने आयी थी. इसके बाद जमीन के नीचे आग लगने के कई मामले सामने आए. कोयला खदानों के वर्ष 1971 में राष्ट्रीयकरण से पहले इन खदानों में खनन का काम निजी कंपनियां करती थी. निजी कंपनियां सुरक्षा मानकों का विशेष ध्यान नहीं रखती थी. झरिया कोयला खदान में आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 1978 में पोलैंड और भारत के विशेषज्ञों की उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया. समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि झरिया क्षेत्र में 41 कोयला खदानों में 77 आग लगने के मामले का पता लगाया है. झरिया कोयला खदान का काम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के जिम्मे है.

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो