रांची (RANCHI): गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्र नाथ की यादगार अगर रांची के टैगोर हिल में जीवंत होती है, तो ठीक इसी पहाड़ी के पीछे झारखंड के टैगोर कहे गए सांस्कृतिक व्यक्तित्व डॉ. रमदयाल मुंडा के सपने जर्जर हाेते एक भवन में दम तोड़ते हुए दिखलाई देते हैं. इस इमारत में डॉ. मुंडा एक लाइब्रेरी और म्यूजियम बनाना चाहते थे, लेकिन उनके देहावसान के बाद इसपर सरकार ने खामोशी की चादर तान ली. आज जब पद्मश्री रामदयाल मुंडा की 83 वीं जयंती मनाई जा रही है, तो THE NEWS POST की टीम जायजा लेने वहां पहुंची थी.
इस अर्धनिर्मित भवन का पिछले 11 साल से देखरेख करने वाला कोई नहीं है. म्यूजियम के साथ साथ पुस्तकालय भी नहीं बन पाया. असामाजिक तत्व इसका इस्तेमाल करते हैं. पुस्तकालय के लिए बने दो बड़े हॉल और म्यूजियम गैलेरी में मकड़े के जाल ही नहीं, जगह-जगह गंदगी पसरी मिली. दीवारों पर दरारें पड़ चुकी हैं. फर्श भी उखड़ रही तो छत की सीलिंग भी झड़ रही है. पानी चूता है. इस धरोहर को संजोने का किसी के पास न तो वक्त है और नहीं फण्ड का जुगाड़ इन 11 वर्षों में हो सका.
शाम को एक दिया भी मयस्सर नहीं उस अधूरे ख्वाब को सजाने के लिए
शाम को जानवर भी अपना बसेरा बना लेते हैं. वहीं खंडहर में अंधेरा पसर जाता है. स्थानीय निवासी अमित मुंडा का कहना है कि इसपर सरकार का भी ध्यान नहीं है. पर्यटन विभाग को इसपर ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही इस स्थल को उनके धरोहर के रूप में जाना जाय इसकी मांग सरकार से की. ताकि उनके अधूरे सपने आदिवासी सामाज के सांस्कृतिक परिवेश, खानपान, नाचगान,को म्यूजियम में स्थापित कर दर्शाया जा सके.
सांसद फंड से एक करोड़ रुपए की थी निर्गत
2010 में जब उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया उसके बाद फंड से एक करोड़ रुपय की राशि इस म्यूजियम को बनाने के लिए जारी की थी. उसके बाद 2011में ही उनकी देहांत हो गई. उसके बाद से यह आज भी म्यूजियम कार्य पुरा नहीं हो पाया. अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने जो वहां देखा था उन्होंने उस परिकल्पना को रूप देने की कोशिश तो की पर यह कोशिश अधूरी रह गयी. ओपन थिएटर बनाने का सपना उन्होंने देखा था जो की आसपास हिल पर बैठे दूर से भी लोग कार्यक्रम को देखेंगे.पर यह परिकल्पना महज रामदयाल मुंडा का कल्पना बनकर ही रह गया.
जयंती मनाने जुटे थे स्थानीय युवा
छत पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए कुछ आदिवसी युवा इकट्ठे मिले. आदिवासी विकास समिति के बैनर तले समिति अध्यक्ष प्रभाकर नाग की अगुवाई में जयंती मनाई गई. डॉ. मुंडा की प्रतिमा भी इन्हीं लोगों ने लगवाई हैं, जिसपर माल्यार्पण किया गया. मौके पर डॉ. मुंडा की भतीजी लखमिनी बिन्हा, गीतकार सुखराम पाह , पद्मश्री मधु मंसूरी भी मौजूद थे. लोगों का कहना था कि झारखंड आंदोलन के रामदयाल मुंडा बौद्धिक अगुआ रहे, लेकिन जल, जंगल, जमीन की बात करने वली सरकार जब सत्तानशीन है, तो उसका भी इस ओर ध्यान नहीं देना विडंबना ही है.

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