पाकुड़ (PAKUR):  हिरणपुर प्रखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम तारापुर-गोविंदपुर में इन दिनों एक विशेष आध्यात्मिक वातावरण देखने को मिल रहा है.  यहां सात दिनों तक चलने वाली श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है, जो पूरे क्षेत्र में श्रद्धा, भक्ति और आत्मचिंतन का केंद्र बनी हुई है. कथा प्रतिदिन शाम 7 बजे से रात 11 बजे तक आयोजित की जा रही है, और इस आयोजन में क्षेत्र के साथ-साथ आस-पास के गांवों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं.

कथा वाचक के रूप में श्री संजय कृष्ण महाराज जी, जो कि वृंदावनधाम के प्रतिष्ठित संत हैं, अपनी वाणी से श्रद्धालुओं को भक्ति, ज्ञान और आत्मबोध का अमूल्य रस पिला रहे हैं. उन्होंने अपने प्रवचनों के माध्यम से जीवन के यथार्थ, उसके उद्देश्य और मृत्यु की अटलता को जिस सहजता और गंभीरता से प्रस्तुत किया, उसने श्रोताओं के हृदय को गहराई तक स्पर्श किया.

कथा के दूसरे दिन, आयोजन स्थल पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ी. हर कोना, हर स्थान भर चुका था, और लोग खड़े होकर, बैठकर, जहां जैसे स्थान मिला, वहां से कथा श्रवण कर रहे थे. पुरुष और महिलाएं एक समान उत्साह और श्रद्धा के साथ उपस्थित थे. संजय कृष्ण महाराज जी ने अपने उपदेश में जीवन और मृत्यु के रहस्यों पर विशेष चर्चा की. उन्होंने बताया कि “एक मनुष्य 24 घंटे में औसतन 21,600 बार सांस लेता है, लेकिन उसे यह ज्ञात नहीं होता कि कौन-सी सांस उसकी अंतिम होगी. मृत्यु का क्षण अनिश्चित है, परंतु उसका आना निश्चित है।"

उन्होंने यह भी कहा कि जब मृत्यु आती है, तब इस पृथ्वी की कोई वस्तु – न सोना, न चांदी, न धन-दौलत और न ही सांसारिक संबंध – किसी के काम नहीं आते.यह जीवन एक क्षणभंगुर यात्रा है, जिसमें केवल कर्म, धर्म और आत्मा का बोध ही साथ चलता है.

महाराज जी ने अपने सहज, भावनात्मक और व्यंग्यात्मक शैली में कहा ज़िन्दगी एक है रेस्टोरेंट, कितना भी लगा लो इसमें सेंट, एक दिन उतर जाएगी पेंट....इस पंक्ति पर लोगों ने पहले मुस्कराया, फिर मौन हो गए – क्योंकि इसमें छिपा हुआ जीवन का सत्य उन्हें भीतर तक झकझोर गया.

उन्होंने यह भी कहा कि भागवत कथा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आत्मिक अनुशासन और मनुष्य के वास्तविक उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करने वाली विधा है. यह कथा हमें जीने की कला सिखाती है – परोपकार, संयम, श्रद्धा और समर्पण के साथ.

इस पुण्य आयोजन की सफल व्यवस्था के पीछे कई समर्पित व्यक्तित्व सक्रिय हैं. संचालन का दायित्व श्री संतोष साहा के कुशल नेतृत्व में किया जा रहा है. उमाचरण साहा के रूप में पूरे कार्यक्रम को मार्गदर्शन दे रहे हैं, वहीं मनोज साहा, अम्बिका साहा, और अन्य स्थानीय सेवकगण – तन, मन और धन से इस आयोजन को सफल बनाने में जुटे हुए हैं. यह कथा न केवल एक धार्मिक आयोजन बनकर रह गई है, बल्कि गांववासियों के लिए यह आध्यात्मिक जागरण का उत्सव बन चुकी है. गांव में सुबह से ही भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, और शाम को जब कथा प्रारंभ होती है, तो मानो पूरा वातावरण भक्ति में डूब जाता है.

यह आयोजन केवल धर्म की शिक्षा नहीं दे रहा, बल्कि समाज में प्रेम, एकता,सेवा और संस्कारों को भी पुनः जाग्रत कर रहा है तारापुर-गोविंदपुर में चल रही यह कथा आने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कारों की अमिट छाप छोड़ने का कार्य कर रही है.

रिपोर्ट: नंद किशोर मंडल/पाकुड़