टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हमारे सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा-पाठ को लेकर विशेष अनुष्ठान किया जाता है, इसके साथ ही हम पित्तरों की भी पूजा करते है जो भी हमारे बड़े बुजुर्ग हैं जो इस दुनिया में नहीं रहें उनकी उनके आत्मा की शांति के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनका आभार व्यक्त करने के लिए हम हर साल पित्तर पक्ष के दौरान कुछ नियम धर्मों का पालन करते है. इस दौरान हम दान पुण्य करते है.वही कुछ लोग गया जाकर पिंडदान करते है. कहा जाता है कि गया में पिंडदान करने से हमारे पूर्वजों और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
माता सीता ने भी अपने पिता जनक का पिंडदान किया था
गया में पिंडदान करने की परंपरा काफी पुरानी है. ऐसी मान्यता है कि माता-सीता ने अपने पिता जनक का पिंडदान गया में ही फल्गु नदी के किनारे किया था.इस परंपरा के अनुसार आज भी लाखो लोग पितृपक्ष के दौरान गया पहुंचते हैं और अपने पितरों का पिंडदान करते है.ऐसा माना जाता है कि पिंडदान करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह स्वर्ग की ओर या आगे बढ़ते है.पितर पक्ष एक ऐसा समय होता है जब हम अपने पूर्वजों और पितरों को धन्यवाद देते है, उनकी सेवा करते है और उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते है.क्योंकि उनके आशीर्वाद से ही हम एक सुखी और शांति का जीवन जी सकते है.
काफी पुराना है गया का इतिहास
पितृपक्ष, मोक्ष और मुक्ति यह शब्द ऐसे है जिनको सुनते ही बिहार के गया जिले की याद आ जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां की प्रतिष्ठाभूमि ही ऐसी है. इसका इतिहास आज नहीं बल्कि त्रेता युग से जुडा हुआ है.त्रेता युग का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि माता सीता ने अपने पिता जनक का पिंडदान यहीं किया था और फल्गु नदी को एक श्राप भी दिया था जो आज भी हमें परिणाम स्वरूप देखने को मिलता है. सभी को पता होगा कि फल्गु नदी रेतीली है जो काफी पतली धारा में बहती है. ऐसा लगता है मानो यह नदी नहीं है लेकिन इसके पीछे माता सीता का श्राप है.ऐसी मान्यता है कि माता सीता जब अपने पिता जनक जी का पिंडदान कर रही थी तो नदी को ही साक्षी बनाया था लेकिन किसी बात से नाराज होकर इसे श्राप दे दिया कि वह हमेशा रेतीली ही रहेगी. यही वजह है कि यह नदी आज भी रेतिली ही नजर आती है.लेकिन इसकी मान्यता इतनी ज्यादा है कि यह अन्य नदियों की तरह पवित्र l है और इसके बिना पितरों को मोक्ष नहीं मिलता है.
पढ़े क्यों प्रसिद्ध है प्रेतशिला
गया के कण कण में धार्मिक मान्यता छुपी हुई है.फल्गु नदी के अलावा यहां एक प्रेतशिला भी है ऐसा माना जाता है कि यहाँ पास पिंडदान करने से प्रेतयोनि में भटक रहे आपके पूर्वजों और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए हर साल पितृपक्ष के दौरान हजारो लोग देश नहीं बल्की विदेशो से भी पिंडदान करने के लिए यहां पहुंचते है.इस लिए लोग अपने पित्तर और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान कराते है.
क्यों पिंडदान के लिए इतना महत्व पूर्ण माना जाता है गया
वही गया की एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि गया नाम का एक राक्षस भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. उसने काफी कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उसके पास पहुंचे, उससे जब पूछा कि उसकी इच्छा क्या है तो उसने बताया कि वह चाहता है कि उसका शरीर जहां पर खतम हो वहा यज्ञ स्थली बने और उसकी वजह से लोगों का कल्याण हो तब भगवान विष्णु ने इसे आशीर्वाद दिया तब से यह जगह गया नाम से प्रसिद्घ हो गया और भगवान विष्णु के चरणों के निशान आज भी गया में देखने को मिलते है. जो एक साक्षी के रूप में आज भी दिखता है.आज भी जब आप जाएंगे तो भगवान विष्णु के चरण चिन्ह आपको दिखाई देंगे.
आधुनिकीकरण के इस युग में भी कम नहीं हुआ है पिंडदान का महत्त्व
भले ही आज हमारा देश चांद पर पहुंच चुका है लेकिन आज भी गया में पिंडदान मोक्ष की प्राप्ति और पूर्वजों की भक्ति में कोई कमी नहीं आयी.आज के आधुनिक युग में जिस तरह से परिवार के सदस्य एक दूसरे से अलग हो रहे है ऐसे में पितृपक्ष हमें सिखाता है कि हमारा जीवन केवल वर्तमान से नहीं हमारे आने आने वाली पीढी और हमारी पुरानी पीढी से भी जूडी है.जो हमने अपनी विरासत से जोडे रखता है.
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