टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : नेपाल ने हाल ही में दुनिया को वह दृश्य दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवाओं, खासकर Gen-Z ने ऐसा तूफ़ान खड़ा कर दिया कि संसद, राष्ट्रपति भवन से लेकर सरकारी दफ्तर तक युवाओं के कब्जे में आ गए. प्रधानमंत्री को देश छोड़कर भागना पड़ा और महज 24 घंटे में नेपाल सत्ता और स्थिरता दोनों से खाली हो गया.
आंदोलन की चिंगारी सोशल मीडिया बैन
पिछले सप्ताह नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, टिकटॉक और X जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर रोक लगा दी. सरकार का तर्क था कि यह कदम समाज में बढ़ती अफवाह और उकसावे को रोकने के लिए है. लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला और स्वतंत्रता का हनन बताया.पहले से ही बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को लेकर असंतोष था. गुस्से में युवाओं के पास सोशल मीडिया ही एकमात्र रास्ता था जहां वे भड़ास निकालते थे. जब यही माध्यम बंद हो गया, तो आक्रोश सड़कों पर फूट पड़ा.
चिंगारी को हवा देने वाले तीन चेहरे
हालांकि यह आंदोलन स्वतःस्फूर्त दिखा, लेकिन इसे हवा देने का काम तीन चर्चित हस्तियों ने किया, ऐसा माना जा रहा है.
- बालेन शाह (Bolendra Shah) : रैपर से नेता बने और काठमांडू के 15वें मेयर. युवाओं में बेहद लोकप्रिय. भ्रष्टाचार और शिक्षा संस्थानों पर टैक्स के खिलाफ आवाज उठाई.
- रवि लामिछाने : पूर्व टीवी होस्ट और डिप्टी प्रधानमंत्री, जनता के बीच मजबूत पहचान.
- सुदन गुरुंग : जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और सोशल मीडिया influencer
इन तीनों ने सोशल मीडिया पर सरकार के फैसले के खिलाफ पोस्ट किया और युवाओं से विरोध के लिए अपील की. खासकर बालेन शाह की पोस्ट “भाइयों और बहनों, 8 सितंबर वो दिन है जब नेपाल के युवा उठेंगे और कहेंगे कि अब पर्याप्त हो गया” ने मानो बारूद में आग का काम किया.
सड़कों से संसद और राष्ट्रपति भवन तक
जैसे ही आह्वान हुआ, काठमांडू की सड़कों पर हजारों युवा उतर आए. संसद भवन, राष्ट्रपति आवास और सरकारी कार्यालयों पर कब्जा कर लिया गया. राजनीतिक दलों के दफ्तर जला दिए गए. मंत्रियों और अधिकारियों को सड़कों पर घसीट कर पीटा गया.
पुलिस हालात संभालने में पूरी तरह विफल रही
प्रधानमंत्री को सत्ता छोड़ देश से भागना पड़ा. 24 घंटे के भीतर नेपाल की सत्ता ढह गई और पूरा देश युवा आक्रोश की आग में जल उठा.
आंदोलन या सोशल मीडिया का नशा
नेपाल का यह विद्रोह केवल राजनीतिक नहीं था.यह सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता का खतरनाक उदाहरण भी बना. युवाओं ने रोजगार, भ्रष्टाचार और सरकारी नाकामियों के बजाय सोशल मीडिया की वापसी को लेकर हिंसा की. उनके लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक सिर्फ प्लेटफ़ॉर्म नहीं बल्कि आवाज़ और पहचान का जरिया बन गए थे. जब यह छीना गया, तो युवा खुद को अस्तित्वहीन महसूस करने लगे. यहां सवाल है कि क्या सोशल मीडिया एक नशा बन चुका है, जिसकी लत छूटने पर युवा जान देने और देश जला देने तक को तैयार हो जाते हैं?
इन्फ्लुएंसर का असर : एक पोस्ट और देश खाक
नेपाल की घटनाओं ने यह भी साबित किया कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर किस कदर प्रभावी हो सकते हैं.न तो बालेन शाह, न रवि लामिछाने और न ही सुदन गुरुंग सड़कों पर उतरे. लेकिन उनके एक-एक पोस्ट ने लाखों युवाओं को हिंसक बना दिया.सवाल उठता है कि क्या देश को सिर्फ कुछ लाइक्स और पोस्ट्स के दम पर अस्थिर किया जा सकता है या फिर एक बड़ी साजिश जिसे अमेरिका, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड जैसे देशों से अंजाम दिया जा सकता है.
दुनिया के लिए सबक और चुनौती
नेपाल की आग केवल उसका आंतरिक संकट नहीं है. यह अन्य देशों के लिए भी चेतावनी है. कई देशों में पहले भी ऐसे मामले आए हैं, जहाँ मोबाइल या सोशल मीडिया छीनने पर बच्चे अपने माता-पिता तक की हत्या कर देते हैं. भारत समेत अन्य देशों में भी युवाओं की बढ़ती निर्भरता चिंता का विषय है. अगर आज नहीं सोचा गया, तो कल किसी भी देश को सोशल मीडिया की एक बंदिश ही गृहयुद्ध की चिंगारी बना सकती है.
नेपाल में जो हुआ, वह केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था बल्कि सोशल मीडिया की लत और इन्फ्लुएंसर की ताकत का भयावह उदाहरण है. Gen Z का गुस्सा बताता है कि आज की पीढ़ी का दिल किताबों, करियर या समाज से ज्यादा मोबाइल और सोशल नेटवर्क में बसा है. सवाल यह है कि क्या हम आने वाली पीढ़ी को सिर्फ वर्चुअल दुनिया में जीने के लिए छोड़ रहे हैं?
क्या इन्फ्लुएंसर की एक पोस्ट पूरी व्यवस्था को ध्वस्त कर सकती है?
नेपाल जल चुका है, लेकिन यह आग किसी भी देश में फैल सकती है. अब यह सोचने का समय है कि सोशल मीडिया केवल सुविधा है या एक बम, जो कभी भी फट सकता है.
Recent Comments