रांची(RANCHI): बच्चों के सर से पिता का साया उठ गया है. और बदकिस्मती ऐसी की इन्हे पिता का चेहरा भी आखरी बार नहीं देखने को मिला.जब पार्थिव शरीर मिलने की उम्मीद भी खत्म हो गई तो पुतला बना कर ही अंतिम संस्कार कर दिया. इस दृश्य को देखर रो पड़े पूरा शमशान चीत्कार मारने लगा. मृतक संतोष साहू की पत्नी खुद को संभाल नहीं पा रही सात साल के बेटे ने मुखाग्नि दिया. हर कोई सोच में था की आखिर मजदूरों की अहमियत सरकार के पास कितनी है.
मामला गुमला प्रखंड के तिर्रा गांव का है. मजदूर संतोष साहू का पुतला बनाकर परिजन हिंदू रीति रिवाज और विधि विधान के साथ श्मशान घाट में अंतिम संस्कार करने को मजबूर हो गए. इस बीच परिवार के लोग और पूरा गांव शव यात्रा में शामिल हुआ. सभी के आंखे नम थी और पूछ रहे थे की आखिर सरकार के पास हमारी क्या कीमत है की मरने के बाद शव भी नहीं निकाला जा सका.
तेलांगना राज्य के नागरकुलम में बीते 22 फरवरी को हुए देश का चर्चित टनल हादसा में फंसे तिर्रा गांव का मजदूर संतोष साहु के शव नहीं मिलने पर उम्मीद छोड़ दिया. छोड़ साथ ही हादसे के 80 दिन बाद संतोष के शव का पुतला बनाकर हिन्दू धार्मिक रीति रिवाज के साठ तिर्रा श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया. मुखग्नि छोटे बेटे ऋषभ ने दिया. इस दौरान पूरा महौल गमगीन रहा. संतोष की पत्नी संतोषी देवी का रो रो कर बुरा हाल था. माँ को रोता देख उसके तीनो बच्चे 12 वर्षीय रीमा कुमारी,10 वर्षीय राधिका कुमारी व छोटा बेटा 7 वर्षीय ऋषभ साहू भी बिलख बिलख कर रो रहे थे.
पत्नी व बच्चो के रोने की आवाज से पूरा माहौल गमगीन हो उठा.उनके आंसू देख उन्हें संभालते हुए व ढांढस बंधाते हुए ग्रामीण भी बिलखने लगे.इस दौरान सबसे विचलित करने वाला दृश्य तब का था जब संतोष के तीनो बच्चे पुतला बनाये गए शव में लगे संतोष के तस्वीर के मुख पर रोते हुए गंगा जल डाल रहे थे. इससे पूर्व सुबह छह बजे ही परिजन शव बनाकर तैयार रखे थे.
बड़ी संख्या में ग्रामीण व रिस्तेदार मौके पर मौजूद थे. सभी अंतिम संस्कार में शामिल हुए. तेलंगाना सरकार द्वारा शव नहीं मिलने के बाद उसे क्षेत्र को रेड जोन घोषित कर दिया और शव का खोज में भी बंद कर दिया. इसके बाद परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र सौंपा गया साथ ही उपायुक्त गुमला ने परिवार वालों को ₹25 लाख का चेक दिया जो तेलंगाना सरकार की ओर से दिया गया था. मृतक की पत्नी संतोषी देवी ने बताया झारखंड सरकार से किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिला है.
ऐसे में सरकार विकास के नाम पर कैसे मजदूरों की ज़िंदगी खत्म करती है. यह साफ हो गया है आखिर मजदूर की कीमत कितनी लगाती है. यह भी दिख गया है. बड़े वादे और दावे के बीच जब पुतले का अंतिम संस्कार हुआ तो हर कोई सवाल पूछ रहा है. आखिर कसूर क्या था गरीब होना.
गुमला से सुशील के साथ ब्युरो रिपोर्ट
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