टीएनपी डेस्क(TNP DESK): कांग्रेस पार्टी को नया अध्यक्ष मिल गया है. मलिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में जीत हासिल की. इसी के साथ 24 साल बाद खड़गे पहले गैर-गांधी व्यक्ति होंगें, जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे. मगर, अध्यक्ष पद के साथ ही खड़गे के पास बड़ी चुनौती होने वाली है. अध्यक्ष पद की शपथ लेने के बाद उन्हें एक ऐसी पार्टी को पुनर्जीवित करना है जो दिन-ब-दिन अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खो रही है, इसे क्षेत्रीय दिग्गजों के पास जाने से रोकना है और यह पता लगाना है कि हाई-प्रोफाइल नेताओं को कैसे बनाए रखा जाए. सही मायनों में कहा जाए तो खड़गे के सामने बहुत बड़ी चुनौती है. चलिए ऐसे ही कुछ चुनौतियों के बारे मे बात करते हैं जिनसे खड़गे को अध्यक्ष बनने के साथ ही सामना करना पड़ेगा.   

रीमोट कंट्रोल ना बनना

अपने अध्यक्ष पद के दौरान खड़गे को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, उनमें से एक यह होगा कि वे अपने स्वतंत्र अधिकार को बनाए रखें और हर एक निर्णय लेने से पहले गांधी परिवार की ओर रुख न करें. हालांकि यह मुश्किल लग सकता है क्योंकि कांग्रेस नेताओं ने "आलाकमान" के प्रति निष्ठा का संकल्प लिया है. चुनावों से पहले खड़गे ने भाजपा के इस आरोप को खारिज करने की कोशिश की कि वह गांधी परिवार के "रिमोट कंट्रोल" के अलावा और कुछ नहीं होंगे. उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग कहते हैं कि मैं रिमोट कंट्रोल हूं और पीछे से काम करता हूं. वे कहते हैं कि मैं वही करूंगा जो सोनिया गांधी कहेंगी. कांग्रेस में रिमोट कंट्रोल जैसी कोई चीज नहीं है. लोग एक साथ निर्णय लेते हैं. यह आपकी सोच है. कुछ लोग इस विचार को बना रहे हैं.

कांग्रेस-जोड़ो मिशन

राहुल गांधी ने भले ही भारत-जोड़ो मिशन शुरू किया हो, लेकिन सबसे पुरानी पार्टी को वास्तव में कांग्रेस- जोड़ो मिशन की जरूरत है. 2014 की लोकसभा हार के बाद से कांग्रेस ने वरिष्ठ नेताओं के बड़े पैमाने पर पलायन का अनुभव किया है. हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कहा है. 2014 से 2022 के बीच कम से कम 460 नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है. लगभग 177 सांसदों/विधायकों ने चुनाव के दौरान पार्टी छोड़ दी, जबकि 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस को अन्य दलों के लिए छोड़ दिया. इनमें से अधिकांश दल-बदल ने किसी न किसी रूप में पार्टी को नुकसान पहुंचाया है. खड़गे के सामने ये एक बड़ी चुनौती होने वाली है.

राजस्थान में आपसी कलह

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान में अंदरूनी कलह को सुलझाना होगा. यह कलह कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान और भी बड़ी हो गई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी और धुर विरोधी सचिन पायलट के बीच भयंकर तकरार चल रही है. गहलोत के वफादार पायलट की पदोन्नति के खिलाफ थे और जब राजस्थान के सीएम द्वारा कांग्रेस चुनाव के लिए अपनी सीएम की कुर्सी छोड़ने की बात की गई तो उन्होंने विद्रोह कर दिया. नतीजा यह हुआ कि गहलोत को अपनी उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी, लेकिन यह सुनिश्चित करना पड़ा कि राजस्थान उनकी पकड़ में मजबूती से बना रहे.

कांग्रेस की खोती विचारधारा

कभी धर्मनिरपेक्ष पार्टी रही कांग्रेस आज वैचारिक रूप से थोड़ी दिशाहीन लगती है. भाजपा का मुकाबला करने के प्रयास में, राहुल और अन्य कांग्रेस नेताओं ने पिछले कुछ वर्षों में सॉफ्ट हिंदुत्व के दृष्टिकोण को अपनाया है. इसने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन किया, जो कांग्रेस के आदर्शों के बिल्कुल विपरीत पार्टी थी. लेकिन वैचारिक धुरी थोड़ी आधी-अधूरी है क्योंकि पार्टी अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती है, जो दशकों से इसके मुख्य मतदाता रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, खड़गे को पार्टी के लिए एक वैचारिक मधुर स्थान खोजना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह अपने वोटर बेस का समर्थन बनाए रखते हुए भाजपा का मुकाबला करने में सफल रहे.

2024 का लोकसभा चुनाव

खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे. 2014 और 2019 के आम चुनावों में भारी हार के बाद कांग्रेस निश्चित रूप से 2024 में बड़ी हिस्सेदारी पर नजर रखेगी. पार्टी प्रमुख के रूप में, खड़गे को गठबंधन में शामिल होने पर कुछ कड़े कदम उठाने होंगे. नीतीश कुमार, शरद पवार और के चंद्रशेखर राव जैसे विपक्षी नेता प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ एक भाजपा विरोधी मोर्चा स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. नीतीश ने पहले कहा था कि अगर ऐसा मोर्चा बनना है तो कांग्रेस एक अहम हिस्सा होगी. खड़गे के तहत, सबसे पुरानी पार्टी को महत्वपूर्ण राजनीतिक गठबंधन बनाने का काम इस तरह से करना होगा जिससे पार्टी को फायदा हो.