टीएनपी डेस्क(TNP): केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने चीफ जस्टिस का इंडिया को लिखे अपने पत्र में इस बात की मांग की है कि वर्तमान में जारी “कॉलेजियम सिस्टम’ की संरचना में बदलाव करते हुए इसमें केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाय.
क्या है कॉलेजियम सिस्टम
कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ती और स्थानांतरण की एक प्रणाली है, कॉलेजियम के सदस्य ही नये जजों की नियुक्ति के लिए सरकार को अपनी अनुंशसा भेजते हैं, इन्ही नामों में सरकार जजों को के नाम पर अपनी सहमति प्रदान करती है. इसके कुल पांच सदस्य होते हैं, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया इसके प्रमुख होते है, जबकि चार मोस्ट सीनियर जजों को इसका सदस्य बनाया जाता है.
लम्बे समय से कानून मंत्री किरण रिजिजू इसकी वकालत कर रहे हैं
यहां बता दें कि केन्द्रीय कानून मंत्री लम्बे अर्से इस बात को उठा रहे हैं कि वर्तमान कॉलेजियम सिस्टम’ में पारदर्शिता का अभाव है, और यह जनता और जन प्रतिनिधियों के प्रति जिम्मेवार नहीं है. कई बार उनकी ओर से कॉलेजियम सिस्टम की सामाजिक संरचना का सवाल भी उठाया गया है और इसे और भी लोकतांत्रिक और समावेशी बनाने की मांग की गई है.दूसरे सामाजिक संगठनों की ओर से इसकी मांग की जाती रही है .यहां यह भी बता दें कि कई दूसरे सामाजिक संगठनों के द्वारा भी इसी प्रकार की मांग की जाती रही है, इन संगठनों का दावा है कि वर्तमान में जारी कॉलेजियम सिस्टम एक अलोकतांत्रिक संगठन है, और इसमें वंचित सामाजिक समूहों के सामाजिक प्रतिनिधित्व का अभाव है. उनकी मांग कॉलेजियम सिस्टम के बदले किसी प्रतियोगी परीक्षा से जजों की नियुक्ति करवाने की है. जिससे की इसमें सभी सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व हो सके. लोकसभा उपाध्यक्ष भी इसके प्रति अपनी चिंता प्रकट कर चुके हैं. उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट अक्सर विधायिका के कामकाज में दखलंदाजी करती है.अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय लेती है. अभी की स्थिति यह है कि केन्द्र सरकार की इस कोशिश नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट (NJAC) लाने की नयी कोशिश के बतौर देखा जा सकता है. यहां बता दें कि NJAC को 2015 में संसद में पास किया गया था, लेकिन अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था.
रिपोर्ट : देवेन्द्र कुमार, रांची
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